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सामान्यावलोकन अर्थात् जिसके संसारको पुष्ट करनेवाले रागादि दोष विनष्ट हो गये हैं, चाहे वह ब्रह्मा हो, विष्णु हो, शिव हो, या जिन हो उसे नमस्कार है ।
‘पक्षपातो न मे वोरे न द्वेषः कपिलादिषु।
युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥"-लोकतत्त्वनिर्णय । अर्थात् मुझे महावीरसे राग नहीं है और न कपिल आदिसे द्वेष । जिसके भी वचन युक्तियुक्त हों, उसकी शरण जाना चाहिये ।
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