________________ जैनदर्शन रक्षणके साथ उपादानोपादेयभावको कौन रोक सकता है ? इसमें जो यह कहा जाता कि 'द्रव्यसे अभिन्न होनेके कारण पर्याय एकरूप हो जायगी या द्रव्य भिन्न हो जायगा', सो जब द्रव्य स्वयं ही पर्यायरूपसे प्रतिक्षण परिवर्तित होता जाता है, तब वह पर्यायोंकी दृष्टिसे अनेक है और उन पर्यायोंमें जो स्वधाराबद्धता है उस रूपसे वे सब एकरूप ही हैं। सन्तानान्तरके प्रथम क्षणसे स्वसन्तानके प्रथमक्षणमें जो अन्तर है और जिसके कारण अन्तर है और जिसकी वजह स्वसन्तान और परसन्तान विभाग होता है वही ऊर्ध्वतासामान्य या द्रव्य है। "स्वभाव-परभावाभ्यां यस्माद् व्यावृत्तिभागिनः / " ( प्रमाणवा० 3 / 39 ) इत्यादि श्लोकोंमें जो सजातीय और विजातीय या स्वभाव और परभाव शब्दका प्रयोग किया गया है, यह 'स्व-पर' विभाग कैसे होगा ? जो 'स्व' की रेखा है वही ऊर्ध्वतासामान्य है। ____ दही और ऊँटमें अभेदकी बात तो निरी कल्पना है; क्योंकि दही और ऊँटमें कोई एक द्रव्य अनुयायी नहीं है, जिसके कारण उनमें एकत्वका प्रसंग उपस्थित हो / यह कहना कि 'जिस प्रकार अनुगत प्रत्ययके बलपर कुंडल, कटक आदिमें एक सुवर्णसामान्य माना जाता है उसी तरह ऊँट और दहीमें भी एक द्रव्य मानना चाहिये' उचित नहीं है; क्योंकि वस्तुतः द्रव्य तो पुद्गल अणु ही हैं / सुवर्ण आदि भी अनेक परमाणुओंकी चिरकाल तक एक-जैसी बनी रहनेवाली सदृश स्कन्धअवस्था ही है और उसीके कारण उसके विकारोंमें अन्वय प्रत्यय होता है। प्रत्येक आत्माका अपनी हर्ष, विषाद, सुख, आदि पर्यायोंमें कालभेद होनेपर भी जो अन्वय है वह ऊर्ध्वतासामान्य है। एक पुद्गलाणुका अपनी कालक्रमसे होनेवाली अवस्थाओंमें जो अविच्छेद है वह भी ऊर्ध्वतासामान्य ही है, इसीके कारण उनमें अनुगत प्रत्यय होता है इनमें उस रूपसे एकत्व या अभेद कहनेमें कोई आपत्ति नहीं; किन्तु दो स्वतन्त्र द्रव्योंमें सादृश्यमूलक ही एकत्वका आरोप होता है, वास्तविक नहीं। अतः जिन्हें हम मिट्टी या सुवर्ण द्रव्य कहते हैं वे सब अनेक परमाणुओंके स्कन्ध हैं। उन्हें हम व्यवहारार्थ ही एक द्रव्य कहते हैं। जिन परमाणुओंके स्कन्धमें सुवर्ण जैसा पीला रंग, वजन, लचीलापन आदि जुट जाता है उन्हें हम प्रतिक्षण सदृश स्कन्धरूप परिणमन होनेके कारण स्थूल दृष्टिसे 'सुवर्ण' कह देते हैं। इसी तरह मिट्टी, तन्तु आदिमें भी समझना चाहिये। सुवर्ण ही जब आयुर्वेदीय प्रयोगोंसे जीर्णकर भस्म बना दिया जाता है, और वही पुरुषके द्वारा भुक्त होकर मलादि रूपसे परिणत हो जाता है तब भी एक अविच्छिन्न धारा परमाणुओंकी बनी ही रहती है, 'सुवर्ण' पर्याय तो भस्म आदि बनकर समाप्त हो जाती है। अतः अनेकद्रव्योंमें व्यवहारके लिये जो सादृश्यमूलक अभेदव्यवहार For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org