________________ स्याद्वाद 395 हिन्दू विश्वविद्यालयके दर्शनशास्त्रके भूतपूर्व प्रधानाध्यक्ष स्व० प्रो० फणिभूषण अधिकारीने तो और भी स्पष्ट लिखा था कि 'जैनधर्मके स्याद्वाद सिद्धान्तको जितना गलत समझा गया है उतना किसी अन्य सिद्धान्तको नहीं। यहाँ तक कि शंकराचार्य भी इस दोषसे मुक्त नहीं हैं। उन्होंने भी इस सिद्धान्तके प्रति अन्याय किया है, यह बात अल्पज्ञ पुरुषोंके लिए क्षम्य हो सकती थी। किन्तु यदि मुझे कहनेका अधिकार है तो मैं भारतके इस महान् विद्वान्के लिए तो अक्षम्य ही कहूँगा। यद्यपि मैं इस महर्षिको अतीव आदरकी दृष्टिसे देखता हूँ। ऐसा जान पड़ता है कि उन्होंने इस धर्मके मूल ग्रन्थोंके अध्ययनकी परवाह नहीं की।" अनेकान्त भी अनेकान्त है : . अनेकान्त भी प्रमाण और नयको दृष्टिसे अनेकान्त अर्थात कथञ्चित अनेकान्त और कञ्चित् एकान्तरूप है। वह प्रमाणका विषय होनेसे अनेकान्तरूप है। अनेकान्त दो प्रकारका-सम्यगनेकान्त और मिथ्या अनेकान्त / परस्परसापेक्ष अनेक धर्मोंका सकल भावसे ग्रहण करना सम्यगनेकान्त है और परस्पर निरपेक्ष अनेक धर्मोका ग्रहण मिथ्या अनेकान्त है। अन्यसापेक्ष एक धर्मका ग्रहण सम्यगेकान्त है तथा अन्य धर्मका निषेध करके एकका अवधारण करना मिथ्यैकान्त है। वस्तुमें सम्यगेकान्त और सम्यगनेकान्त ही मिल सकते हैं, मिथ्या अनेकान्त और मिथ्र्यकान्त जो प्रमाणाभास और दुर्नयके विषय पड़ते हैं नहीं, वे केवल बुद्धिगत ही हैं, वैसी वस्तु बाह्यमें स्थित नहीं है। अतः एकान्तका निषेध बुद्धिकल्पित एकान्तका ही किया जाता है। वस्तुमें जो एक धर्म है वह स्वभावतः परसापेक्ष होने के कारण सम्यगेकान्त रूप होता है / तात्पर्य यह कि अनेकान्त अर्थात् सकलादेशका विषय प्रमाणाधीन होता है, और वह एकान्तकी अर्थात् नयाधीन विकलादेशके विषयकी अपेक्षा रखता है। यही बात स्वामी समन्तभद्रने अपने बृहत्स्वयंभूस्तोत्रमें कही है "अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः प्रमाण-नयसाधनः / अनेकान्तः प्रमाणात्ते तदेकान्तोऽपितान्नयात् // 102 // " अर्थात प्रमाण और नयका विषय होनेसे अनेकान्त यानी अनेक धर्मवाला पदार्थ भी अनेकान्तरूप है। वह जब प्रमाणके द्वारा समग्रभावसे गृहीत होता है तब वह अनेकान्त-अनेकधर्मात्मक है और जब किसी विवक्षित नयका विषय होता है तब एकान्त एकधर्मरूप है, उस समय शेष धर्म पदार्थमें विद्यमान रहकर भी दृष्टिके सामने नहीं होते / इस तरह पदार्थकी स्थिति हर हालतमें अनेकान्तरूप ही सिद्ध होती है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org