________________ 386. जैनदर्शन संजयके परलोक, देवता, कर्मफल और मुक्तिके सम्बन्धके ये विचार शतप्रतिशत अज्ञान या अनिश्चयवादके हैं। वह स्पष्ट कहता है कि "यदि मैं जानता होऊँ, तो बताऊँ।" वह संशयालु नहीं, घोर अनिश्चयवादी था। इसलिये उसका दर्शन बकौल राहुलजीके "मानवकी सहजबुद्धिको भ्रममें नहीं डालना चाहता और न कुछ निश्चय कर भ्रान्त धारणाओंकी पुष्टि ही करना चाहता है।" वह आज्ञानिक था। बुद्ध और संजय : म० बुद्धने 1. लोक नित्य है, 2. अनित्य है, 3. नित्य-अनित्य है, 4. न नित्य न अनित्य है, 5. लोक अन्तवान् है, 6. नहीं है, 7. है नहीं है, 8. न है न नहीं है, 9. मरनेके बाद तथागत होते हैं, 10. नहीं होते, 11. होते हैं नहीं होते, 12. न होते हैं न नहीं होते, 13. जीव शरीरसे भिन्न है, 14. जीव शरीरसे भिन्न नहीं है।' ( माध्यमिकवृत्ति पृ० 446 ) इन चौदह वस्तुओंको अव्याकृत कहा है। मज्झिमनिकाय ( 2 / 23 ) में इनकी संख्या दस है। इनमें आदिके दो प्रश्नोंमें तीसरा और चौथा विकल्प नहीं गिनाया है / 'इनके अव्याकृत होनेका कारण बुद्धने बताया है कि इनके बारे में कहना सार्थक नहीं, भिक्षुचर्याके लिये उपयोगी नहीं, न यह निर्वेद, निरोध, शान्ति, परमज्ञान या निर्वाणके लिये आवश्यक है।' तात्पर्य यह कि बुद्धकी दृष्टिमें इनका जानना मुमुक्षुके लिये आवश्यक नहीं था। दूसरे शब्दोंमें बुद्ध भी संजयकी तरह इनके बारेमें कुछ कहकर मानवकी सहज बुद्धिको भ्रममें नहीं डालना चाहते थे और न भ्रान्तधारणाओंकी सृष्टि ही करना चाहते थे। हाँ, संजय जब अपनी अज्ञानता और अनिश्चय को साफ-साफ शब्दोंमें कह देता है कि 'यदि मैं जानता होऊँ तो बताऊँ, तब बुद्ध अपने जानने न जाननेका उल्लेख न करके उस रहस्यको शिष्योंके लिये अनुपयोगी बताकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं। आज तक यह प्रश्न तार्किकोंके सामने ज्यों-का-त्यों है कि बुद्धकी अव्याकृतता और संजयके अनिश्चयवादमें क्या अंतर है, खासकर चित्तकी निर्णयभूमिमें ? सिवाय इसके कि संजय फक्कड़की तरह पल्ला झाड़कर खरी-खरी बात कह देता है और बुद्ध कुशल बड़े आदमियोंकी शालीनताका निर्वाह करते हैं। बुद्ध और संजय ही क्या, उस समयके वातावरणमें आत्मा, लोक, परलोक और मुक्तिके स्वरूपके सम्बन्धमें सत्, असत्, उभय और अनुभय यो अवक्तव्य ये चार कोटियाँ गूंजती थीं। जिस प्रकार आजका राजनैतिक प्रश्न 'मजदूर और मालिक, शोष्य और शोषकके' द्वन्द्वकी छायामें ही सामने आता है, उसी प्रकार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org