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________________ प्रमाणमीमांसा 303 व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है, क्योंकि बिजली आदिसे अतिप्रसंग दोष आता है। आचार्य हेमचन्द्रके अनुसार अन्य आठ दृष्टान्ताभास ( 1 ) सन्दिग्धसाध्यान्वय-जैसे यह पुरुप रागी है, क्योंकि वचन बोलता है, रथ्यापुरुषकी तरह। (2) सन्दिग्धसाधनान्वय-जैसे यह पुरुष मरणधर्मा है, क्योंकि यह रागी है, रथ्यापुरुषकी तरह। ( 3 ) सन्दिग्धोभयधर्मान्वय-जैसे यह पुरुष किंचिज्ज्ञ है, क्योंकि रागी है, रथ्यापुरुषकी तरह। इन अनुमानोंमें चूंकि परकी चित्तवृत्तिका जानना अत्यन्त कठिन है, अतः राग और किंचिज्ज्ञत्वकी सत्ता सन्दिग्ध है / (4-6 ) इसी तरह इन्हीं अनुमानोंमें साध्य-साधनभूत राग और किंचिज्ज्ञत्वका व्यतिरेक सन्दिग्ध होनेसे सन्दिग्धसाध्यव्यतिरेक, सन्दिग्धसाधनव्यतिरेक और सन्दिग्धोभयव्यतिरेक नामके व्यतिरेक दृष्टान्ताभास हो जाते हैं। (7-8 ) अप्रदर्शितान्वय और अप्रदर्शितव्यतिरेक भी दृष्टान्ताभास होते हैं, यदि व्याप्तिका ग्राहक तर्क उपस्थित न किया जाय / 'यथावत् तथा' आदि शब्दोंका प्रयोग न होनेकी वजहसे किसीको दृष्टान्ताभास नहीं कहा जा सकता; क्योंकि व्याप्तिके साधक प्रमाणकी उपस्थितिमें इन शब्दोंके अप्रयोगका कोई महत्व नहीं है; और इन शब्दोंका प्रयोग होनेपर भी यदि व्याप्तिसाधक प्रमाण नहीं है, तो वे निश्चयसे दृष्टान्ताभास हो जायेंगे। बादिदेवसरिने अनन्वय और अव्यतिरेक इन दो दृष्टान्ताभासोंका भी निर्देश किया है, परन्तु आचार्य हेमचन्द्र स्पष्ट लिखते हैं कि ये स्वतन्त्र दृष्टान्ताभास नहीं हैं; क्योंकि पूर्वोक्त आठ-आठ दृष्टान्ताभास अनन्वय और अव्यतिरेकके ही विस्तार हैं। उदाहरणाभास : दृष्टान्ताभासके वचनको उदाहरणाभास कहते हैं। उदाहरणाभासमें वस्तुगत दोष और वचनगत दोष दोनों शामिल हो सकते हैं। अतः इन्हें उदाहरणाभास कहनेपर ही अप्रदर्शितान्वय, विपरीतान्वय, प्रदर्शितव्यतिरेक, विपरीत व्यतिरेक जैसे वचनदोषोंका संग्रह हो सकता है, दृष्टान्ताभासमें तो केवल वस्तुगत दोषोंका ही संग्रह होना न्याय्य है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.010044
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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