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________________ प्रमाणमीमांसा 297 प्रत्यभिज्ञानाभास : 'सदृश पदार्थमें 'यह वही है' ऐसा ज्ञान तथा उसी पदार्थमें 'यह उस जैसा इस सहै प्रकारका ज्ञान प्रत्यभिज्ञानाभास है। जैसे सहजात देवदत्त और जिनदत्तमें भ्रमवश होनेवाला विपरीत प्रत्यभिज्ञान, या द्रव्यदृष्टिमें एक ही पदार्थमें बौद्धको होनेवाला सादृश्य प्रत्यभिज्ञान और पर्यायदृष्टिसे सदृश पदार्थमें नैयायिकादिको होनेवाला एकत्वज्ञान / ये सब प्रत्यभिज्ञानाभास हैं। तर्काभास : जिसमें अविनाभाव सम्बन्ध नहीं है, उनमें व्याप्तिज्ञान करना तर्काभास 2 है / जैसे-जितने मैत्रके पुत्र होंगे वे सब श्याम होंगे आदि / यहाँ मैत्रतनयत्व और श्यामत्वमें न तो सहभावनियम है और न क्रमभावनियम; क्योंकि श्यामताका कारण उस प्रकारके नामकर्मका उदय और गर्भावस्थामें माताके द्वारा शाक आदिका प्रचुर परिणाममें खाया जाना है। अनुमानाभास : पक्षाभास आदिसे उत्पन्न होनेवाले अनुमान अनुमानाभास हैं। अनिष्ट, सिद्ध और बाधित पक्ष पक्षाभास है। मीमांसकका 'शब्द अनित्य है' यह कहना अनिष्ट पक्षाभास है। कभी-कभी भ्रमवश या घबड़ाकर अनिष्ट भी पक्ष कर लिया जाता है / 'शब्द श्रवण इन्द्रियका विषय है' यह सिद्ध पक्षाभास है / शब्दके कानसे सुनाई देनेमें किसीको भी विवाद नहीं है, अतः उसे पक्ष बनाना निरर्थक है / प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, लोक और स्ववचनसे बाधित साध्यवाला पक्ष बाधित पक्षाभास है। जैसे-'अग्नि ठंडी है; क्योंकि वह द्रव्य है, जलकी तरह / ' यहाँ अग्निका ठंडा होना प्रत्यक्षसे बाधित है। 'शब्द अपरिणामी है; क्योंकि वह कृतक है, घटकी तरह / ' यहाँ 'शब्द अपरिणामी है' यह पक्ष 'शब्द परिणामी है; क्योंकि वह अर्थक्रियाकारी है और कृतक है घटकी तरह' इस अनुमानसे बाधित है। 'परलोकमें धर्म दुःखदायक है, क्योंकि वह पुरुषाश्रित है, जैसे-कि अधर्म / ' यहाँ धर्मको दुःखदायक बताना आगमसे बाधित है। 'मनुष्यकी खोपड़ी पवित्र है; क्योंकि वह प्राणीका अंग है, जैसे-कि शंख और शुक्ति' / यहाँ मनुष्यकी खोपड़ीकी पवित्रता लोकबाधित है। लोकमें गौके शरीरसे उत्पन्न होनेपर भी दूध पवित्र माना जाता 1. परीक्षामुख 6 / 6 / 2. परीक्षामुख 6 / 10 / 3. परीक्षामुख 6 / 11-20 / Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.010044
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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