________________ 280 जैनदर्शन तब एक व्यावृत्तिका दूसरी व्यावृत्तिसे विशिष्ट होनेका कोई मतलब ही नहीं निकलता। यदि विशेषणविशेष्यभावके समर्थनके लिये अनीलव्यावृत्त नील वस्तु और अनुत्पलव्यावृत्त उत्पल वस्तु 'नीलमुत्पलम्' इस पदका वाच्य कही जाती है; तो अपोहकी वाच्यता स्वयं खण्डित हो जाती है और जिस वस्तुको आप शब्दके अगोचर कहते थे, वही वस्तु शब्दका वाच्य सिद्ध हो जाती है / ___ यदि गौशब्दके द्वारा अगौका अपोह किया जाता है, तो अगौशब्दका वाच्य भी तो एक अपोह ( गो-अपोह ) हो होगा। यानी जिसका अपोह ( व्यवच्छेद ) किया जाता है, वह स्वयं जब अपोहरूप है, तो उस व्यवच्छेद्य अपोहको वस्तुरूप मानना पड़ेगा; क्योंकि प्रतिषेध वस्तुका होता है। यदि अपोहका प्रतिषेध किया जाता है तो अपोहको स्वयं वस्तु ही मानना होगा। इसलिए अश्वादिमें गौ आदिका जो अपोह होता है वह सामान्यभूत वस्तु का ही कहना चाहिये। इस तरह भी शब्द का वाच्य वस्तु ही सिद्ध होती है। किञ्च' 'अपोह' इस शब्दका वाच्य क्या होगा ? यदि 'अनपोहव्यावृत्ति; तो 'अनपोहव्यावृत्तिका वाच्य कोई अन्य व्यावृत्ति होगी, इस तरह अनवस्था आती है / अतः यदि अपोहशब्दका वाच्य 'अपोह' विधिरूप माना जाता है; तो अन्य शब्दोंका भी विधिरूप वाच्य माननेमें क्या आपत्ति है ? चूँकि प्रतिनियत शब्दोंसे प्रतिनियत अर्थों में प्राणियोंकी प्रवृत्ति देखी जाती है, इसलिए शाब्दप्रत्ययोंका विषय परमार्थ वस्तु ही मानना चाहिये। रह जाती है संकेतकी बात; सो सामान्यविशेषात्मक पदार्थमें संकेत किया जा सकता है। ऐसा अर्थ वास्तविक है, और संकेत तथा व्यवहारकाल तक द्रव्यदृष्टिसे रहता भी है। समस्त व्यक्तियाँ समानपर्यायरूप सामान्यकी अपेक्षा तर्कप्रमाणके द्वारा उसी प्रकार संकेतके विषय भी बन जायँगी जिस प्रकार कि अग्नि और धूमको व्याप्तिके ग्रहण करनेके समय अग्नित्वेन समस्त अग्नियाँ और धूमत्वेन समस्त धूम व्याप्तिके विषय हो जाते हैं / यह आशंका भी उचित नहीं कि 'शब्दके द्वारा यदि अर्थका बोध हो जाता है, तो चक्षुरादि इन्द्रियोंकी कल्पना व्यर्थ है;' क्योंकि शब्दसे अर्थकी अस्पष्ट रूपमें प्रतीति होती है। अतः उसकी स्पष्ट प्रतीतिके लिए अन्य इन्द्रियोंकी सार्थकता है / यह दूषण भी ठीक नहीं है कि 'जैसे अग्निके छूनेसे फोला पड़ता है और दुःख होता है, उसी तरह दाह शब्दके सुननेसे भी होना चाहिये' क्योंकि फोला पड़ना या दुःख होना अग्निज्ञानका कार्य नहीं है; किन्तु अग्नि और देहके सम्बन्धका कार्य है / सुषुप्त या मूच्छित अवस्थामें ज्ञानके न होनेपर भी अग्निपर हाथ पड़ जानेसे फोला पड़ जाता है और दूरसे चक्षु इन्द्रियके द्वारा अग्निको देखने पर भी फोला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org