________________ 252 जैनदर्शन .स्थलको दृष्टान्त कहते हैं और दृष्टान्तका सम्यक् वचन उदाहरण' कहलाता है / साध्य और साधनकी व्याप्ति-अविनाभावसम्बन्ध कहीं साधर्म्य अर्थात् अन्वयरूपसे गृहीत होता है और कहीं वैधर्म्य अर्थात् व्यतिरेकरूपसे / जहाँ अन्वयव्याप्ति गृहोत हो वह अन्वयदृष्टान्त तथा व्यतिरेकव्याप्ति जहाँ गृहीत हो वह व्यतिरेकदृष्टान्त है / इस दृष्टान्तका सम्यक् अर्थात् दृष्टान्तकी विधिसे कथन करना उदाहरण है / जैसे 'जो-जो धूमवाला है वह-वह अग्निवाला है, जैसे कि महानस, जहाँ अग्नि नहीं है वहाँ धूम भी नहीं है, जैसे कि महाह्रद / ' इस प्रकार व्याप्तिपूर्वक दृष्टान्तका कथन उदाहरण कहलाता है। __ दृष्टान्तकी सदशतासे पक्षमें साधनकी सत्ता दिखाना उपनय है। जैसे 'उसी तरह यह भी धूमवाला है।' साधनका अनुवाद करके पक्षमें साध्यका नियम बताना निगमन है। जैसे 'इसलिये अग्निवाला है।' संक्षेपमें हेतुके उपसंहारको उपनय कहते हैं और प्रतिज्ञाके उपसंहारको निगमन / हेतुका कथन कहीं तथोपपत्ति ( साध्यके होने पर ही साधनका होना ), अन्वय या साधर्म्यरूपसे होता है और कहीं अन्यथानुपपत्ति ( साध्यके अभावमें हेतुका नहीं ही होना ), व्यतिरेक या वैधर्म्यरूपसे होता है / दोनोंका प्रयोग करनेसे पुनरुक्ति दूषण आता है। हेतुका प्रयोग व्याप्तिग्रहणके अनुसार ही होता है / अतः हेतुके प्रयोगमात्रसे विद्वान् व्याप्तिका स्मरण या अवधारण कर लेते हैं। पक्षका प्रयोग तो इसलिये आवश्यक है कि साध्य और साधनका आधार अतिस्पष्टरूपसे सूचित हो जाय। व्याप्तिके प्रसंगसे व्याप्य और व्यापकका लक्षण भी जान लेना आवश्यक है। व्याप्य और व्यापक : व्याप्तिक्रियाका जो कर्म होता है अर्थात् जो व्याप्त होता है वह व्याप्य है और जो व्याप्तिक्रियाका कर्ता होता है अर्थात् जो व्याप्त करता है वह व्यापक होता है। जैसे अग्नि धुआँको व्याप्त करती है अर्थात् जहाँ भी धूम होगा वहाँ अग्नि अवश्य मिलेगी, पर धूआँ अग्निको व्याप्त नहीं करता, कारण यह है कि निर्धूम भी अग्नि पाई जाती है। हम यह नहीं कह सकते कि 'जहाँ भी अग्नि है वहाँ धूम अवश्य 1. देखो, परीक्षामुख 3 / 42-44 / 2. परीक्षामुख 345 / 3. परीक्षामुख 3 / 46 / 4. परीक्षामुख 3186-63 / Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org