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________________ प्रमाणमीमांसा 211 अवधिज्ञान: __ अवधिज्ञानावरण और वीर्यान्तरायके क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेवाला ज्ञान अवधिज्ञान है। यह रूपिद्रव्यको ही विषय करता है, आत्मादि अरूपी द्रव्यको नहीं / चंकि इसकी अपनी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी मर्यादा निश्चित है और यह नीचेकी तरफ अधिक विषयको जानता है, अतएव अवधिज्ञान कहा जाता है / इसके देशावधि, परमावधि और सर्वावधि ये तीन भेद होते हैं। मनुष्य और तिर्यंचोंके गुणप्रत्यय देशावधि होता है और देव तथा नारकियोंके भवप्रत्यय / भवप्रत्यय अवधिमें कर्मका क्षयोपशम उस पर्यायके ही निमित्तसे हो जाता है, जबकि मनुष्य और तिर्यञ्चोंके होनेवाले देशावधिका क्षयोपशम गुणनिमित्तक होता है। परमावधि और सर्वावधि चरमशरीरी मुनिके ही होते हैं / देशावधि प्रतिपाती होता है, परन्तु सर्वावधि और परमावधि प्रतिपाती नहीं होते / संयमसे च्युत होकर अविरत और मिथ्यात्व-भूमिपर आ जाना प्रतिपात कहा जाता है / अथवा, मोक्ष होनेके पहले जो अवधिज्ञान छूट जाता है, वह प्रतिपाती होता है। अवधिज्ञान सूक्ष्मरूपसे एक परमाणुको जान सकता है। मनःपर्ययज्ञान : २मनःपर्ययज्ञान दूसरेके मनकी बातको जानता है। इसके दो भेद हैं-एक ऋजुमति और दूसरा विपुलमति / ऋजुमति सरल मन, वचन, और कायसे विचारे गये पदार्थको जानता है, जब कि विपुलमति सरल और कुटिल दोनों तरहसे विचारे गये पदार्थों को जानता है / मनःपर्ययज्ञान भी इन्द्रिय और मनकी सहायताके बिना ही होता है। दूसरेका मन तो इसमें केवल आलम्बन पड़ता है। 'मनःपर्ययज्ञानी दूसरेके मनमें आनेवाले विचारोंको अर्थात् विचार करनेवाले मनकी पर्यायोंको साक्षात् जानता है और उसके अनुसार बाह्य पदार्थोंको अनुमानसे जानता है' यह एक आचार्यका मत है। दूसरे आचार्य मनःपर्ययज्ञानके द्वारा बाह्य पदार्थका साक्षात् ज्ञान भी मानते हैं / मनःपर्ययज्ञान प्रकृष्ट चारित्रवाले साधुके ही होता है। इसका विषय अवधिज्ञानसे अनन्तवाँ भाग सूक्ष्म होता है। इसका क्षेत्र मनुष्यलोक बराबर है। 1. देखो, तत्त्वार्थवार्तिक 1 / 21-22 / 2. देखो, तत्त्वार्थवार्तिक 126 // 3. "जाणइ बज्झेऽणुमाणेण-विशेषा० गा० 814 / Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.010044
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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