________________ 182 जैनदर्शन आदान-निक्षेपण समिति-देख-शोधकर किसी वस्तुका रखना, उठाना / उत्सर्ग समिति-देख-शोधकर निर्जन्तु स्थानपर मलमूत्रादिका विसर्जन करना। धर्म: ___ आत्मस्वरूपकी ओर ले जानेवाले और समाजको संधारण करनेवाले विचार और प्रवृत्तियाँ धर्म हैं / धर्म दश हैं। उत्तम क्षमा-क्रोधका त्याग करना। क्रोधके कारण उपस्थित होनेपर वस्तुस्वरूपका विचारकर विवेकजलसे उसे शान्त करना / जो क्षमा कायरताके कारण हो और आत्मामें दीनता उत्पन्न करे वह धर्म नहीं है, वह क्षमाभास है, दूषण है। उत्तम मार्दव-मृदुता, कोमलता, विनयभाव, मानका त्याग / ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीर आदिकी किंचित् विशिष्टताके कारण आत्मस्वरूपको न भूलना, इनका मद न चढ़ने देना / अहंकार दोष है और स्वाभिमान गुण / अहंकारमें दूसरेका तिरस्कार छिपा है और स्वाभिमानमें दूसरेके मानका सम्मान है। उत्तम आर्जव-ऋजुता, सरलता, मायाचारका त्याग / मन वचन और कायकी कुटिलताको छोड़ना / जो मनमें हो, वही वचनमें और तदनुसार ही कायकी चेष्टा हो, जीवन-व्यवहारमें एकरूपता हो। सरलता गुण है और भोंदूपन दोष / उत्तम शौच-शुचिता, पवित्रता, निर्लोभ वृत्ति, प्रलोभनमें नहीं फँसना। लोभ कषायका त्यागकर मनमें पवित्रता लाना। शौच गुण है, परन्तु बाह्य सोला और चौकापंथ आदिके कारण छ-छ करके दूसरोंसे घृणा करना दोष है। उत्तम सत्य-प्रामाणिकता, विश्वास-परिपालन, तथ्य और स्पष्ट भाषण। सच बोलना धर्म है, परन्तु परनिन्दाके अभिप्रायसे दसरोंके दोषोंका ढिंढोरा पीटना दोष है। परको बाधा पहुँचानेवाला सत्य भी कभी दोष हो सकता है। उत्तम संयम-इन्द्रिय-विजय और प्राणि-रक्षा / पाँचों इन्द्रियोंकी विषय-प्रवृत्तिपर अंकुश रखना, उनकी निरर्गल प्रवृत्तिको रोकना, इन्द्रियोंको वशमें करना। प्राणियोंकी रक्षाका ध्यान रखते हुए, खान-पान और जीवन-व्यवहारको अहिंसाकी भूमिकापर चलाना / संयम गुण है, पर भावशून्य बाह्य क्रियाकाण्डका अत्यधिक आग्रह दोष है / उत्तम तप–इच्छानिरोध / मनकी आशा और तृष्णाओंको रोककर प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य ( सेवा ), स्वाध्याय और व्युत्सर्ग ( परिग्रहत्याग ) की ओर चित्तवृत्तिका मोड़ना। ध्यान करना भी तप है। उपवास, एकाशन, रसत्याग, एकान्तवास, मौन, कायक्लेश, शरीरको सुकुमार न होने देना आदि बाह्य तप हैं / इच्छानिवृत्ति करके अकिंचन बननारूप तप गुण है और मात्र कायक्लेश करना, पंचाग्नि तपना, हठयोगकी कठिन क्रियाएँ आदि बालतप हैं। उत्तम त्याग-दान देना, त्यागकी भूमिकापर आना / शक्त्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org