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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । (६) समाधि, (७) उपेक्षा बोधि अगोंके सम्बन्धमें जानता है । (बोधि (परमज्ञान) प्राप्त करनेमें ये सातों परम सहायक हैं इसलिये इनको बोधिअग कहा जाता है) ___वह भिक्षु चार मार्य सत्य धर्मोमें धर्म अनुभव करते विहरता है । (१) यह दुःख है, ठीक २ अनुभव करता है, (२) यह दुःखका समुदय या कारण है, (३) यह दुःख निरोध है, (४) यह दुःख निरोधकी ओर लेजानेवाला मार्ग है, ठीक ठीक अनुभव करता है। इसी तरह भिक्षु भीतरी धर्मोमें धर्मानुपश्यी होकर विहरता है। मलम (अलिप्त) हो विहरता है। लोकमें किसीको भी “ मै और मेरा" करके नहीं ग्रहण करता है । जो कोई इन चार स्मृति प्रस्थानोको इस प्रकार सात वर्ष भावना करता है उसको दो फलोंमें एक फल अवश्य होना चाहिये । इसी जन्ममे आज्ञा (अईत्व) का साक्षात्कार वा उपाधि शेष होनेपर अनागामी भवि रहनेको सात वर्ष, जो कोई छ वर्ष, पाच वर्ष, चार वर्ष, तीन वर्ष, दो वर्ष, एक वर्ष, सात मास, छ. मास, पाच मास, चार मास, तीन मास, दो मास, एक मास, अर्ध मास या एक सप्ताह भावना करे वह दो फलों से एक फल अवश्य पावे । ये चार स्मृति प्रस्थान सत्वोंके शोक कष्टकी विशद्धिके लिये दुख दौर्मनस्यके अतिक्रमणके लिये, सत्यकी प्राप्तिके लिये, निर्वाणकी प्राप्ति और साक्षात् करने के लिये एकापन मार्ग है। नोट इस सूत्रमें पहले ही बताया है कि वे चार स्मृतियें निर्वाणकी प्राप्ति और साक्षात्कार करने के लिये मार्ग हैं। ये वाक्य
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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