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दूसरा भाग। वेदनाकी उत्पत्ति है, यह वेदनाका विनाश है, (३) यह सज्ञा हैयह सज्ञाकी उत्पत्ति है, यह मज्ञाका विनाश है (४) यह सरकार है, यह सस्कारकी उत्पत्ति है, यह सस्कारका विनाश है, (५) यह विज्ञान है-यह विज्ञानकी उत्पत्ति है, यह विज्ञानका विनाश है।
वह छ शरीके भीतरी और बाहरी मायतन धर्मों में धर्म अनु भव करता विहरता है, भिक्षु-(१) चक्षुको व रूपको अनुभव करता है। उन दोनोंका संयोजन कैसे उत्पन्न होता है उमे भी मनुभव करता है, जिस प्रकार अनुत्पन्न सयोजनकी उत्पत्ति होती है उसे भी जानता है । जिस प्रकार उत्पन्न सयोजनका नाश होता है उसे भी जानता है। जिस प्रकार नष्ट सयोजनकी मागे फिर उत्पत्ति नहीं होती से भी जानता है । इसी तरह (२) श्रोत्र व शब्दको, (३) घ्राण व गधको (४) जिहा व रसको (५) काया व स्पर्शको (६) मन व मनके धर्मोको। इस तरह भिक्षु शरीरके भीतर और बाहरवाले छ आयतन धर्मों का स्वभाव अनुभव करते हुए विहरता है।
वह सात बोधिअंग धर्मोमें धर्म अनुभव करता विहरता है (१) स्मृति-विद्यमान भीतरी ( अध्यात्म ) म्मृति बोधिअगको मेरे भीतर स्मृति है, अनुभव करता है। अविद्यमान स्मृतिको मेरे भीतर स्मृति नहीं है, अनुभव करता है। जिस प्रकार अनुत्पन्न स्मृतिकी उत्पत्ति होती है उसे जानता है, जिस प्रकार स्मृति बोधिभगकी भावना पूर्ण होती है उसे भी जानता है। इसी तरह (२) धर्मविषय (धर्म भन्वेषेण), (३) वीर्य, (४) पीकि, (५) प्रब्धि (शाति),