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जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [३३ मूल विषयोंकी तृष्णा है । सम्यक् प्रकार स्वस्वरूपके भीतर रमण करनेसे ही विषयोंकी वासना दूर होती है।
फिर बताया है कि जरा मरणका कारण जन्म है। जन्मका निरोध होगा तब जरा व मरण न होगा। फिर बताया है पाच इन्द्रिय और मनके विषयोंकी तृष्णाकी उत्पत्ति इन छहोंके द्वारा विषयोंकी वेदना है या उनका अनुभव है। केलका कारण इन छहोंका और विषयोंका संयोग है । इस सयोगका कारण छहों इन्द्रियोंका होना है। इनकी प्राप्ति नामरूप होनेपर होती है। नामरूप अशुद्ध ज्ञान सहित शरीरको कहते हैं। शरीरकी उत्पत्ति पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुसे होती है वही रूप है । नामकी उत्पत्ति वेदना, सज्ञा, चेतना सस्कारसे होती है । विज्ञान ही नामरूपका कारण है। पाच इन्द्रिय और मन सम्बन्धी ज्ञानको विज्ञान कहते हैं, उसका कारण सस्कार है। सस्कार मन, वचन, काय सम्बन्धी तीन है । इसका सस्कार कारण भविद्या है । दुख, दु खके कारण, दु ख निरोध और दु ख निरोध मार्गके सम्बन्धमें अज्ञान ही अविद्या है । अविद्याका कारण मानव है अर्थात् चित्तमल है वे तीन है-काम भाव (इच्छा), भव या जन्मनेकी इच्छा, मविद्या इस अ स्रवका भी कारण भविद्या है। मानव अविद्याका कारण है।
__ इस कथनका सार यह है कि मविद्या या अज्ञान ही सर्व ससारके दुखोंका मूल है। जब यह रागके वशीभूत होकर अज्ञा. नसे इन्द्रियोंके विषयोंमे प्रवृत्ति घरता है तब उनके अनुभवसे संज्ञा होजाती है । उनका संसार पड़ जाता है। सस्कारसे विज्ञान होती