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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [५७ उत्पत्ति ), आहार विरोध और माहार निरोध गामिनी प्रतिपद, ( आहारके विनाशकी ओर लेजाने मार्ग) को जानता है तब वह सम्यग्दृष्टि होता है। इनका खुलासा यह है-सन्तोंकी स्थिति होनेकी सहायताके लिये भूतों (प्राणियों) के लिये चार आहार है-(१) स्थूक या सूक्ष्म कवलिंकार (ग्रास करके खाया जानेवाला) आहार, (२) स्पर्श, (३) मनकी सचेतना, (४) विज्ञान, तृष्णाका समुदय ही माहारका समुदय (कारण) है । तृष्णाका निरोध-आहारका निरोध है । आर्द-आप्तगिक मार्ग आहार निरोधगामिनी प्रतिपद है जैसे (१) सम्यग्दृष्टि, (२) सम्यक् सकल्प, (३) सम्यक् वचन, (४) सम्यक् कर्मान्त (कर्म), (५) सम्यक् मानीव (भोजन), (६) सम्यक् व्यायाम (उद्योग), (७) सम्यक् स्मृति, (८) सम्यक् समाधि । जो इनको जानकर सर्वथा रागानुशमको परित्याग करता है वह सम्यग्दृष्टि होता है । जब आर्य श्रावक (१) दुख, (२) दु ख समुदय (कारण), (३) दु ख निरोध, (४) दु ख निरोधगामिनी प्रतिपदको जानता है तब वह सम्यग्दृष्टि होता है । इसका खुलाशा यह है-जन्म, जरा, व्याधि, मरण, शोक, परिदेव (रोना), दुख दौर्मनस्य (मनका सताप), उपायास (परेशानी) दुख है। किसीकी इच्छा करके उसे न पाना भी दु ख है । सक्षेपमें पाचों उपादान (विषयके तौरपर ग्रहण करने योग्य रूप, वेदना, सज्ञा, सस्कार, विज्ञान ) स्कध ही दुख है। वह जो नन्दी उन उन भोगोंको अभिनन्दन करनेवाली, रागसे सयुक्त फिर फिर जन्मनेकी तृष्णा है जैसे (१) काम (इन्द्रिय सभोग) की तृष्णा, (२) भव (जन्मने) की तृष्णा, (३) विभव (धन) की तृष्णा । ग्रह दुःख समुदय (कारण) है।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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