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दूसरा भाग। (७) मज्झिमनिकाय सम्यग्दृष्टि सूत्र ।
गौतमबुद्ध के शिष्य सारिपुत्रने भिक्षुओको कहा-सम्यक्दृष्टि कही जाती है । कैसे मार्य श्रावक सम्यग्दृष्टि ( टीक सिद्धातवाला) होता है। उसकी दृष्टि सीधी, वह धर्ममें अत्यन्त श्रद्धावान, इम मधर्मको प्राप्त होता है तब भिक्षुजोंने कहा, सारिपुत्र ही इसका मर्थ कहे।
सारिपुत्र कहने लगे-जब आर्य श्रावक अकुशल (बुराई) को जानता है, भकुशल मूल को जानता है, कुशल (भलाई) को जानता है, कुशल मूलको जानता है, तब वह सम्यक्दृष्टि होता है ।
इन चारोंका भेद यह है । (१) प्राणातिपात (हिंसा) (२) भदत्तादान (चोरी), (३) काममे दुराचार, (४) मृषावाद (झठ), (५) पिशुनवाद (चुगली), (६) पम्प वचन (कठोर वचन), (७) सपलाप (बकवाद), (८) अभिव्या (लाम), (९) व्यापाद (प्रतिहिंसा), (१०) मिथ्यादृष्टि (झूठी धारणा) अकुशल है ।
(१) लोभ, (२) द्वेष, (३) मोह, अकुशल मूल है। इन ऊपर कही दश बातोंसे विरति कुशल है । (१) भलोभ, (२) अद्वेष, (३) अमोह कुशल मूल है । जो आर्य श्रावक इन चारोंको जानता है वह राग-अनुशव (मल) का परित्याग कर, प्रतिध (पतिहिंसा या द्वेष) को हटाकर अस्थि (मैद) इस दृष्टिमान (धारणाके मभिमान) अनुशयको उन्मूलन कर भविद्याको नष्ट कर, विद्याको उत्पन्न कर इसी जन्ममें दु.खोंका अन्त करनेवाला सम्यग्दृष्टि होता है।
जब मार्य श्रावक आहार, आहार समुदय (माहारकी