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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [४९ जो स्वय दान्त, विनीत, परिनिर्वृत्त है वह दुसरेको दान्त, विनीत, परिनिर्वृत्त करेगा यह सभव है। ऐसे ही हिसक पुरुष के लिये अहिंसा परिनिर्वाण के लिये होती है। इसी तरह ऊपर कही ४० बातोंको जानना चाहिये । यह मैने सल्लेख पर्याय या चितुप्पाद पर्याय या परिक्रमण पर्याय या उपरिभाव पर्याय या परिनिर्वाण पर्याय उपदेशा है । श्रावको (शिष्यों) के हितैषी, अनुकम्पक, शास्ताको अनुकम्पा करके जा करना चाहिये वह तुम्हारे लिये मैने कर दिया। ये वृक्षमूल है, ये सूने घर हैं, व्यानरत होओ, प्रमाद मत करो, पीछे अफसोस करने वाले मत बनना । यह तुम्हारे लिये हमारा अनुशासन है । नोट-सल्लेख सूत्रका यह अभिप्राय प्रगट होता है कि अपने दोषोंको हटाकरके गुणोंको प्राप्त करना । सम्यक् प्रकार लेखना या कृश करना सल्लेखना है। अर्थात् दोषोंको दूर करना है। ऊपर लिखित ४० दोष वास्तवमें निर्वाणके लिये बाधक है । इनहीके द्वारा ससारका भ्रमण होता है। समयसार ग्रथमें जैनाचार्य कुन्दकुन्दाचार्य कहते हैंसामण्णपच्चया खलु चउरो भण्णति बधकत्त रो। मिच्छत्त अविरमण कसाय जोगा य बोद्धव्या ॥ ११६॥ भावार्थ-कर्मबन्धके कर्ता सामान्य प्रत्यय या मास्रवभाव चार कहे गए है । मिथ्यादर्शन, अविरति, कषाय और योग । आपको आपरूप न विश्वास करके और रूप मानना तथा जो अपना नहीं है उसको अपना मानना मिथ्यादर्शन है। आप वह आत्मा है जो निर्वाण स्वरूर है, अनुभवगम्य है । वचनोंसे इतना ही कहा जा
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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