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________________ ४८ ] दूसरा भाग 1 बहुश्रुत होंगे, (४१) उद्योगी होंगे, (४२ ) उपस्थित स्मृति होंगे, (४३) प्रज्ञा सम्पन्न होंगे, (४४) सादृष्टि परामर्शी ( ऐहिक लाभ सोचनेवाले), आधानग्रही (हटी), दुष्प्रतिनिसर्गी (कठिनाई से त्याग करनेवाले) न होंगे। अच्छे घर्मो के विषय में विचारके उत्पन्न होने को भी मैं हितकर कहता हू । काया और वचनसे उनके अनुष्ठान के बारेमे तो कहना ही क्या है, ऊपर कहे हुए (४४) विचारोंको उत्पन्न करना चाहिये । 1 जैसे कोई विषम (कठिन) मार्ग है और उसके परिक्रमण (त्याग) के लिये दूसरा सममार्ग हो या विषम तीर्थ या घाट हो व उसक परिक्रमणके लिये समतीर्थ हो वैसे ही हिंसक पुरुष पुद्गल (व्यक्ति) को अहिंसा ग्रहण करने योग्य है, इसी तरह ऊपर लिखित ४४ बातें उनके विरोधी बातोंको त्यागकर ग्रहण योग्य है । जैसे - कोई भी भकुशल धर्म (बुरे काम) है वे सभी अघोभाव (अधोगति) को पहुचानेवाले हैं । जो कोई भी कुशल धर्म (मच्छे काम) है वे सभी उपरिभाव (उन्नति की तरफ) को पहुचानेवाले है वैसे ही हिंसक पुरुष पुद्गलको अहिंसा ऊपर पहुचानेवाली होती है । इसीतरह इन ४४ बातोंको जानना चाहिये । 1 जो स्त्रय गिरा हुआ है वह दूसरे गिरे हुएको उठाएगा यह सभव नहीं है किंतु जो आप गिरा हुआ नहीं है वही दूसरे गिरे हुएको उठाएगा यह समय है । जो स्वय अदान्त (मनके संयमसे रहित) है, अविनीत, अपरि निर्वृत ( निर्वाणको न प्राप्त ) है वह दुसरेको दान्त, विनीत व परिनिर्वृच करेगा यह सभव नहीं । किंतु
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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