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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [४७ रहा हू। लेकिन आर्य विनयमें इन्हें सल्लेख नहीं कहा जाता। मार्य विनयमें इन्हें इष्टधर्म-सुखविहार ( इसी जन्ममें सुखपूर्वक विहार ) कहते है या शान्तविहार कहते हैं। किन्तु सल्लेख तप इस तरह करना चाहिये-(१) हम अहिंसक होंगे, (२) प्राणातिपातसे विरत होंगे, (३) अदत्त ग्रहण न करेंगे, (४) ब्रह्मचारी रहेंगे, (५) मृषावादी न होंगे, (६) पिशुनभाषी (चुगलखोर) न होंगे, (७) परुष (कठोर) भाषी न होंगे, (८) सप्रलापी (नकवादी) न होंगे, (९) भभिध्यालु (लोभी) न होंगे, (१०) व्यापन्न ( हिंसक ) चित्त न होंगे, (११) सम्यक्दृष्टि होंगे, (१२) सम्यक् समरूपधारी होंगे, (१३) सम्यक्भाषी होंगे, (१४) सम्यक् काय कर्म कर्ता होंगे, (१५) सम्यक् माजीविका करनेवाले होंगे, (१६) सम्यक् व्यायामी होंगे, (१७) सम्यक् स्मृतिधारी होंगे, (१८) सम्यक् समाधिधारी होंगे, (९) सम्यक्ज्ञानी होंगे, (२०) सम्यक् विमुक्ति भाव सहित होंगे, (२१) स्यानगृद्ध (शरीर व मनके आलस्य) रहित होंगे, (२२) उद्धत न होंगे, (२३) सशयवान होंगे, (२४) क्रोधी न होंगे, (२५) पनाही (पाखडी) न होंगे, (२६)मक्षी (कीनावाले) न होंगे, (२७) प्रदशी (निष्ठुर) न होंगे, (२८) ईर्षारहित होंगे, (२९) मत्सरवान न होंगे, ३०) शठ न होंगे, (३१) मायावी न होंगे, (३२) स्तब्ध (जड) न होंगे, (३३) भभिमानी न होंगे, (३४) सुवचनभाषी होंगे, (३५) कल्याण मित्र (भलोंको मित्र बनानेवाले) होंगे, (३६) अप्रमत्त रहेंगे, (३७, श्रद्धालु रहेंगे, (३८) निर्लज्ज न होंगे, (३९) अपत्रदी (उचितम को माननेवाले) होंगे, (४०)
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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