SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ ] दूसरा भाग । दुसरी कासेकी थाली से ढककर बाजारमे रखदें उसे देखकर लोग कहे कि अहो ! यह चमकता हुआ क्या रक्खा है। फिर ऊपरकी थालीको उठाकर देखें । उसे देखते ही उनके मनमें वृणा, प्रतिकूलता, जुगुसा उत्पन्न होजावे, भूखे को भी खाने की इच्छा न हो, पेटभरों की तो बात ही क्या। इसी तरह बुराइयोंसे भरे भिक्षुका सत्कार उत्तम पुरुष नहीं करते । परन्तु जिस किसी भिक्षुकी बुराइया नष्ट होगई हैं उसका सत्कार सब्रह्मचारी करते है । जैसे एक निर्मल कासेकी थाली बाजारसे लाई जावे उसका मालिक उसमें साफ किये हुए शालीके चाबलको अनेक प्रकारके सूप (दाल) और व्यनन (साग भाजी) के साथ सजाकर दूसरी कासेकी थालीसे ढककर बाजारमें रखदें, उसे देखकर लोक कहे कि चमकता हुआ क्या है ? थाली उठाकर देखें तो देखते ही उनके मन में प्रसन्नता, अनुकूलता और भजुगुप्सा उत्पन्न होजावे, पेटभरेकी भी खाने की इच्छा हो जावे, भूखोंको तो बात ही क्या है । इसी प्रकार जिसकी बुराइया नष्ट होगई है उसका सत्पुरुष सत्कार करते है । नोट- इस सूत्र में शुद्ध चित्त होकर धर्ममाधनकी महिमा बताईं है तथा यह झलकाया है कि जो ज्ञानी है वह अपने दोषोंको मेट सक्ता है। जो अपने भावको पहचानता है कि मेरा भाव यह शुद्ध है वह अशुद्ध है वही अशुद्ध भावोंके मिटानेका उद्योग करेगा । प्रयत्न करते करते ऐसा समय आयगा कि वह दोषमुक्त व वीतराग होजावे । जैन सिद्धाद में भी प्रतीके लिय विषयकषाय व शल्य व गार आदि दोषोंके मेटने का उपदेश है । उसे पाच इन्द्रियोंकी
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy