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जैन बौद्ध तत्वज्ञान । (३) होसकता है कोई भिक्षु यह इच्छा करे कि मै अपराध करू, मेरे बराबरका व्यक्ति मुझे दोषी ठहरावे दूसरा नहीं । कदाचित् दुसरेने दोष ठहराया इस बातसे वह कुपित होजावे, यह कोप एक तरहका अगण है।
(४) होसकता है कोई भिक्षु यह इच्छा करे कि शास्ता (बुद्ध) मुझे ही पूछ पूछकर धर्मोपदेश करे दूसरे भिक्षुको नहीं । कदाचित शास्ता दूसरे भिक्षुको पूछ कर धर्मोपदेश करे उसको नहीं, इस बातसे वह भिक्षु कुपित होजावे, यह कोप एक तरहका अगण ह ।
(५) होसकता है कि कोई भिक्षु यह इच्छा करे कि मै ही माराम ( आश्रम ) में आये भिक्षुओंको धर्मोपदेश करू दुसरा भिक्षु नहीं। होसकता है कि अन्य ही भिक्षु धर्मोपदेश करे, ऐमा सोच कर वह कुपित होजावे । यही को। एक तरहका अगण है।
(६) होसकता है किसी भिक्षुको यह इच्छा हो कि भिक्षु मेग ही सत्कार करें, मेरी ही पूजा करे, दूसरे की नहीं। होसकता है कि भिक्षु दूसरे भिक्षुकी सत्कार पूजा करे इससे वह कुपित होजावे यह एक तरहका अगण है। इत्यादि ऐमी । बुराइयों और इच्छाकी परतत्रताओंका नाम अगण है । जिस किसी कि भिक्षुकी यह बुगइया नष्ट नहीं दिखाई पड़ती है सुनाई देती है, चाहे वह बनवासी, एकात कुटी निवासी, भिक्षान्नभोजी आदि हो उसका सत्कार व मान स ब्रह्मचारी नहीं करते क्योंकि उसकी बुगइश नष्ट नहीं हुई है। जैसे कोई एक निर्मल कासेकी थाली बाजारसे लावे, फिर उसका मालिक उसमे मुर्दे साप, मुर्दै वुत्ते या मुर्दै मनुष्य ( के मास ) को भरकर