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________________ दूसरा भाग। न उसे साफ रक्खे-कचरेमे डालदे तो यह थाली कालातरमें मैली होजायगी। जो व्यक्ति अगण रहित होता हुआ ठीकसे जानता है वह मनोज्ञ निमित्तोंकी तरफ मनको नहीं झुकाएगा तब वह गगसे लिप्त न होगा। वह रागद्वेष मोहरहित होकर, अंगणरहित व निर्मलचित्त हो मरेगा जैसे-शुद्ध कासे की थाली कसेरेके यहासे लाई जावे। मालिक उसका उपयोग करें, साफ रक्खें उसे कचरेमे न डाले तब वह थाली कालातरमें और भी अधिक परिशुद्ध और निर्मल होजायगी। तब भोग्गलापनने प्रश्न किया कि अंगण क्या वस्तु है ? तब सारिपुत्र कहते हे -पाप, बुराई व इच्छाकी परतंत्रताका नाम अंगण है, उसके कुछ दृष्टात नीचे प्रकार हैं (१) हो सकता है कि किसी भिक्षुके मनमें यह इच्छा उत्पन्न हो कि मैं अपराध करू तथा कोई भिक्षु इस बातको न जाने । कदाचित् कोई भिक्षु उस भिक्षुकके बारेमें जान जावे कि हमने मापत्ति की है तब वह भिक्षु यह सोचे कि भिक्षुभोंने मेरे अपराधको जान लिया । और मनमे कुपित होवे, नाराज होवे, यही एक तरहका अंगण है। (२) हो सकता है कोई भिक्षु यह इच्छा करे कि मैं अपराध करू लेकिन भिक्षु मुझे अकेले हीमें दोषी ठहरावें, सघमें नहीं, कदा चित् भिक्षुगण उसे सबके बीच में दोषी ठहरावें, अकेले मे नहीं । तब वह भिक्षु इस बातसे कुपित होजावे यह जो कोप है वही एक तर इका अंगण है।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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