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जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [" इनमेसे अगण सहित दोनों व्यक्तियोंमें पहला व्यक्ति हीन है, दुसरा व्यक्ति श्रेष्ठ है जो अगण है इस बातको ठीकसे जानता है। इसी तरह अगण रहित दोनोंमे से पहला हीन है। दूसरा श्रेष्ठ है जो अगण नहीं है इस बातको ठीकसे जानता है। इसका हेतु यह है कि जो व्यक्ति अपने भीतर अगण है इसे ठीक से नहीं जानता है। वह उस अगणके नाशक लिये प्रयत्न, उद्योग व वीर्यारभ न करेगा। वह राग, द्वेष, मोह मुक्त रह मलिन चित्त ही मृत्युको प्राप्त करेगा जैसे-कासेकी थाली रज और मलसे लिप्त ही कसेरेके यहासे घर लाई जावे उसको लानेवाला मालिक न उसका उपयोग करे न उसे साफ करे तथा कचरेमे डालदे तब वह कासे की थाली कालातरमें
और भी अधिक मैली हो जायगी इसीतरह जो अगण होते हुए उसे ठीकसे नहीं जानता है वह अधिक मलीनचित्त ही रहकर मरेगा ।
जो व्यक्ति अगण सहित होने पर ठीकसे जानता है कि मेरे भीतर मल है वह उस मलके नाशके लिये वीर्यारम्भ कर सकता है, वह राग, द्वेष, मोह रहित हो, निर्मल चित्त हो मरेगा । जैसे रज व मलसे लिप्त कासेकी थाली लाई जावे, मालिक उसका उपयोग करे, साफ करे, उसे कचरेमें न डाले तब वह स्तु कालातरमें अधिक परिशुद्ध होजायगी।
जो व्यक्ति अगण रहित होता हुमा भी उसे ठीकसे नहीं जानता है वह मनोज्ञ (सुदर) निमित्तोंके मिलने -नकी ओर मनको झुका देगा तब उसके चित्तमे राग चिपट जाय -वह राग, द्वेष मोह सहित, मलीनचित्त हो मरेगा। जैसे बाजारसे कासेकी थाली शुद्ध लाई जावे परन्तु उसक मालिक न उसका उपयोग करे,