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दूसरा भाग। रहित व आत्मसयम युक्त विहरते हुए, रातके पहले पहरमें मुझे यह पहली विद्या प्राप्त हुई, अविद्या नष्ट हुई, तम नष्ट हुआ, मालोक उत्पन्न हुना। लो इसप्रकार वित्तको एकाग्र परिशुद्ध होनपर प्राणियोंके मरण और जन्मक ज्ञान के लिये चित्तको झुकाया । सो मैं अगानुम् विशुद्ध, दिव्य' र अन्छे बुरे, सुवर्ण दुर्वण, सुगति वाले, दुर्गतिपाले प्राणियोंको मरते उत्पन्न होते देखन ले। कर्मनुमार (यथा कम्मवगे) गतिको प्राप्त होते प्राणियोंको पहचानने लगा।
जो प्राणधारी कायिक दुराचारसे युक्त, वाचिक दुराचारसे युक्त, मानसिक दुराचारसे युक्त, आर्योंके निन्दक मिथ्यादृष्टि, मिथ्यादृष्टि कर्मको रखनेवाले (मिथ्यादृष्टि कम्म समादाना) थे वे काय छोडनेपर मरने के बाद दुर्गति पतन, नर्कमें प्राप्त हुए है । जो प्राणधारों काायक, नाचक, मासिक सदाचारस युक्त आर्योंक भनिन्दक सम्यदृष्टि (सच्चे सिद्धातवाले) सम्यदृष्टि सम्बर्ध वर्मका करनेवाले (सम्मदिट्ठी कम्म समादाना) वे काय छोडनपर मरने के बाद सुगति, स्वर्गलोकको प्राप्त हुए हैं । इसप्रकार अमानुष विशुद्ध दिव्यचक्षुसे प्राणियों को पहचानने लगा । रातके मध्यम पहरमें यह मुझे दूसरी विद्या प्राप्त हुई
फिर इस प्रकार समाधियुक्त व शुद्ध चित्त होते हुए आस्रवोंके भयके ज्ञानके लिये चित्तको झुकाया। यह दुःख है, यह दुःखका कारण है, यह दुःख निरोध है, यह दुःख निरोधका साधन (दुःनिरोध, गामिनीप्रतिपद्,) इसे यथार्थसे जान लिया। यह बास्रव है, यह आस्रवका कारण है, यह आस्रव निरोष है, यह आस्रव निरोधका साधन है यथार्थ जान लिया। सो इसप्रकार