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जैन बौद्ध तत्वज्ञान |
आस्रवभाव | (१) मिथ्यादर्शन (२) अविरति हिंसादि
सवरभाव ।
(३) प्रमाद (असावधानी) (४) कषाय क्रोध, मान, माया, कोभ ।
(५) योग - मन, वचन, कायकी
क्रिया |
विशेष रूप से सवरके भाव कहे है
सम्यग्दर्शन
पत्र - भहिसा, मत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, परिग्रह त्याग,
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या १२ अविरतिभाव, पाच इंद्रिय व मनको न
रोकना तथा पृथ्वी, जल,
अग्नि, वायु, वनस्पति
तथा सकायका विराधनः
अपमाद
वीतरागभाव
योगोंकी गुप्ति
(१) गुप्ति - मन, वचन, कार को रोकना ।
(२) समिति पाच - (१) देवकर चलना । (२) शुद्ध वाणी कहना । (३) शुद्ध भोजन करना । (४) देखकर ना उठाना (५) देखकर मलमूत्र करना ।
(३) धर्म दश - (१) उत्तम क्षमा, (२) उत्तम मार्दव (कोमलता), (३) उत्तम आर्जव (सरळता ), (४) उत्तम सत्य, (५) उत्तम शौच ( पवित्रता) (६) उत्तम सयम, (७) उत्तम तप, ( ८ ) उत्तम त्याग
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