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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [१५ करता है, मिटाता है, उत्पन्न हुए व्यापाद वितर्क (द्रोहके ख्याल) का, उत्पन्न हुए, विहिंसा वितर्क (अति हिसाके ख्याल) का, पुन पुन उत्पन्न होनेवाले, पापी विचारो (धर्मो)का स्वागत नहीं करता है । भिक्षुओ ! जिसके न हटनेसे दाह और पीड़ा देनेवाले मानव उत्पन्न होते हैं, और विनोद न करनेसे उत्पन्न नहीं होते। जैन सिद्धातके कहे हुए भासव भावोंमें षाय मी है जैसा ऊपर लिखा है कि मिथ्यात्व, अविरति,प्रमाद, कषाय और योग ये पाच आसवभाव है। क्रोध, मान, माया, लोभसे विचारोंको रोकने से कामभाव, द्वेषभाव, हिंसकभाव व अन्य पापमय भाव रुक जाते है। इसी सवालव सूत्रमें है कि भिक्षु भो! कौनसे भावना द्वारा प्रहातव्य आस्रव है ? भिक्षुओं! यहा (एक) भिक्षु ठोक्ये जानकर विवेकयुक्त, विरागयुक्त, निरोधयुक्त मुक्ति परिणामवाले स्मृति सबोध्यगकी भावना करता है। ठीकसे जानकर स्मृति, धमविचय, वीर्यविचय, प्रीति, प्रश्रब्धि, समाधि, उपेक्षा सबोध्यगकी भावना करता है। नोट-सबोधि परम ज्ञानको करने है, उसके लिये जो अग उपयोगी हो उनको सबोध्यग + है वे सात ई-स्मृति (सत्यका स्मरण), धर्मविचय (धर्मका विचार) वीर्यविचय (अपनी शक्तिका उपयोग करनेका विचार), प्रीएि तोष), प्रश्रब्धि (शाति), समाधि (चित्तकी एकाग्रता), उपेक्षा (वैर न्य )। जन सिद्धातमें सवरके कारणों में अनुमक्षाको ऊपर कहा गया है। वारवार विचारनेको या भारता करनेको अनुप्रेक्षा कहते है। वे भावनाएं बारह हैं उनमें स्रव मूत्र में कही हुई भावनाएं ।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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