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________________ दृमरा भाग। (२)मज्झिमनिकाय सव्वामवसूत्र या सर्वास्तवस्त्र। इम सूत्रमें मारे अनवॉक सक'का उपदेश गौतमबुद्धन निया है। आम्रव और सवर शब्द - 1 मिनालमें शब्दोंके यथार्थ भर्थमें दिम्बलाए गए है। जैनमिद्धा में परम णुओंके कध बनते रहन है उनमें से सूक्ष्म स्कर झामाणवर्गण" है जो सर्वत्र लोकमें याप्त हैं। मन, वचन, कायका क्रिया मेसे य अपने पास खिंच मानी हे और पाप या पुण्यरूपम जान है। जिन भावोंसे ये आनो हैं उनको भावास्रव कहते है ५ उन आना द्रव्यासव कहन है । उनके विरोधो रोहयाले भ वाको भावसन कहते हैं और कर्मवर्ग णाओंके रुक जानेको द्रव्यसबर कहन है। इम बौद्ध सूत्र में भावान बोंका कथन इस तरहपर किया है-भिक्षुओ! जिा धर्मों के सनम करनेमे उस भीता अनुत्पन्न १. म असम (कामनारूपो मल) उत्पन होता है और उत्पन्न म त्रास बढ़ता है, उत्पन्न भव असध (जन्मनेकी इच्छा रूपी ग्ल) उत्पन्न होता है और उत्पन्न भव अनु स्पन अविद्या असत्र (अज्ञानरूपी मन) उत्तन होता है और उत्पन्न अविना म सा बदना है इस धर्मों से नहीं करना योग्य है। नोट-यहा काम भाव जन्म भाव न मज्ञान भावको मूल भाषा सा बताकर समाधि भावमें ही पहचाया है, जहा निष्क म भाव है न जन्मनेकी इच्छा है न मात्मज्ञानको छोटकर कोई आराम है। निर्विकल्प समाधिके भीतर प्रवेश कराया है। इसी लिये इसी सूत्र में कहा है कि जो इस समाधिक बाहर होता है वह कहहियोंके भीतर फस जाता है।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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