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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान | f७ दशाए - केवल आप अकेला बच गया । वही मै हू वहीं मैं था वहा मैं रहूगा । मेरे सिवाय अन्य मै नहो हू, न कभी था न कभी हूगा । जैसे मूल पर्याय सूत्र विवेक या भदविज्ञानको बताया है वैसा ही यहा बताया है । समयसारम और भी स्पष्ट कर दिया हैमहमिको खलु सुद्धो दमणणाणमइओ सयारूवी | णवि अस्थि मज्झ किचित्र अण्ण परमाणुमित्त ॥ ४३ ॥ भावार्थ - मै एक अक्ला ह, निश्चयसे शुद्ध हू, दर्शन व ज्ञान स्वरूप हू, सदा ही अमुर्ती हू, अन्य परमाणु मात्र भी मेरा कोई नहीं है। श्री पूज्यपादस्वामी समाधिशनकमें कहत है - स्वबुद्धया यावद्गृहणीयात्कायवाक् चेतमा त्रयम् । ससारस्ताव देतेषा भेदाभ्यासे तु निर्वृति ॥ ६२ ॥ भावार्थ - जबतक मन, वचन काय इन तीनों में से किमीको भी आत्मबुद्धिसे मानता रहेगा वहातक ससार है, भेदज्ञान होनेपर मुक्ति हो जायगी । यहा मन वचन काय में सर्व जगतका प्रपञ्च आगया । क्योंकि विचार करनेवाला मन है । वचनोंमे कहा जाता है, शरीर से काम किया जाता है । मक्षिका उपाय भेद विज्ञान ही है । ऐसा अमृतचंद्र आचार्य समयसारकलश में कहने है + / भावज्ञामच्छिन्नवाग्या । तावद्यावत्पराच्छन्वा ज्ञान ज्ञान प्रतिष्ठते ॥ ६-६ ॥ 9 भावार्थ - भेदविज्ञान की भावना लगातार उस समय तक करते रहो जबतक ज्ञान परसे छूटकर ज्ञानमें प्रतिष्ठाको न पावे अर्थात् जबतक शुद्ध पूर्ण ज्ञान न हो । इस मूल पर्याय सूत्र में इसो भेदविज्ञानको बताया है । -654-
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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