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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान : [ २२५ (३-१२) (१०३५४) उपस्थित नहीं होता तो गर्भ धारण नहीं होता । माता पिता एकत्र होते हैं। माता ऋतुमती होती है किंतु गन्धर्व उपस्थित नहीं होते तो भी गर्भ धारण नहीं होता। जब माता पिता एकत्र होते है, माता ऋतुमती होती है और गन्धर्व उ स्थित होता है । इस प्रकार तीनों एकत्रित होनसे गर्म वाण होता है । सब उस मरु- मारवाले गर्भको बड़े संशय के साथ माता कोख नौ या दस मास धारण करती है । फिर उस गरु भारवाले गर्भको बड़े सायक साथ माता नौ या दस मासके बाद जनती है। उस जात (सान) को अपने ही दुधसे पोती है । १ तब भिक्षुओ ! वह कुमार बढ़ा होनेवर, इन्द्रियों के परिपक्क होनेपर जो वह बच्चों खिलौने है। जैसे कि बैंकक (त्रका), घटिक (बडिया), मोखचिक (मुंडका वड्डू), चिगुलक (चितुलिया) पात्र पाठक (तराजू), रथक (गाड़ी), धनुक (धनुही), उनसे खेलता है । तब भिक्षुभो ! वह कुमार और बडा होने पर, इन्द्रियोंक परिपक होनेपर, सयुक्त सलिष्ठ हो पाच प्रकारके काम गुणों (विषयभोगों ) को सवन करता है । अर्थात् चक्षुमे विज्ञेय दृष्ट रूपोंकों, श्रोत्र से इष्ट शब्दोंको, घ्राणसे इष्ट गन्धोंधे, जिह से इष्ट ग्सोंकों, काय से इष्ट स्पर्शो को सेवन करना है। वह च्क्षुमे प्रिप रूपों को देखकर रारयुक्त होता है, अमिर रूपोंको देखकर द्वेषयुक्त होता है । कायिक स्मृति ( होश ) को कायम रख छोटे चितसे विहरता है । वह उस चितकी विमुक्त और प्रज्ञानी विमुक्तिका ठीक से ज्ञान नहीं करता, जिससे कि उसकी सारी बुराइनं नम्र
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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