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________________ २२० ] दूसरा भाग । पैदा एक बडा भी माताकी गर्दनके सहारे तैरते गगाकी धारको तिरछे काटकर स्वस्त्रिपूर्वक पार चला गया । सो क्यों इमी लिये कि बुद्धिमान ग्व लेने हाकी । ऐसे ही भिक्षुओं । जो कोई श्रमण या ब्राह्मण इस लोक परलोक के जानकार, मारके लक्ष्य अक क्ष्य के जानकार व मृत्युके लक्ष्य अलक्ष्य के जानकार हैं उनके उप देशको जो सुनने योग्य श्रद्धा करने योग्य समझेंगे उनके लिये यह चिरकालतक हितकर - सुखकर होगा । (१) जैसे गायोंके नायक वृषभ स्वस्निपूर्वक पार चले गए ऐसे ही जो ये अईत्, क्षेणास्रव, ब्रह्मचर्यत्रास समाप्त कृतकृत्य, भारमुक्त, सप्त पदार्थको प्रत, भव बघन रहित, सम्यग्ज्ञ नद्वारा युक्त है वे मारकी धाराको तिरछे काटकर स्वस्तिपूर्वक पार जायगे । (२) जैसे शिक्षित बलवान गाए पार होगईं, ऐसे ही जो भिक्षु पाच व्यवरभागीय सयोजनों ( सत्काय दृष्टि ) ( आत्मवादकी मिथ्या दृष्टि ), विचिकित्सा ( संशय ), शीतत्रत परामर्श ( व्रता चरणका अनुचित अभिमान), कामच्छेन्द (भोगों में राग ), व्यामौह ( पीड़ाकारी वृत ) के क्षयमे औरपातिक (अयोनिज देव) हो उस देवसे लौटकर न मा वहीं निर्वाणको प्रप्त करनेवाले हैं वे भी चार होजायगे । (३) जैसे बछडे वछडिया पार होगई वैसे जो भिक्षु तीन सयोजनोंके नाशसे- राग द्वष, मोहके निर्बल होनेसे सकृदाग मी है, एक वार ही इस लोक में आकर दुखका अत करेंगे वे भी निर्वा को प्राप्त करनेवाले हैं ।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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