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जैन बौद्ध तत्वज्ञान ।
[ २२१ (४ जैसे एक निर्बल वछडा पार चला गया वैसे ही जो भिक्षु तीन सयोजनोंक क्षयसे स्रोतापन्न है, नियमपूर्वक सबोधि (परम ज्ञान) परायण ( निर्वाणगामी पथ से ) न भृष्ट होनेवाले है, वे भी पार होंगे।
इस मेरे उपदेशको जो सुनने योग्य श्रद्धा के योग्य मानेंगे उनके लिये वह चिकाल तक हितकर सुस्वक' होगा । तथा कहा जानकारने इस लोक परलोकको प्रकाशित किया । जो मारकी पहुचमे है और जो मृत्युकी पहुचमें नहीं हैं । जानकार सबुद्धने सब लोकको जानकर । निर्वाणकी प्राप्ति के लिये क्षेम (युक्त) अमृत द्वार खोल दिया । पापी (मार) के स्रोतको छिन्न, विव्वस्त, विश्वचलित कर दिया । भिक्षुओ ! प्रमोदयुक्त होवो-क्षेमकी चाह करो ।
नोट - इम ऊपर के कथन से यह दिखलाया है कि उपदेशदाना बहुत कुशल मोक्षमार्गका ज्ञाता व सपारमार्गका ज्ञाता होना चाहिये तब इसके उपदेश से श्रोतागण सच्चा मोक्षमार्ग पाएगे । जो स्वयं
ज्ञान है वह आप भी डूबेगा व दुसरेको भी डूबाएगा । निर्वाणको ससारके पार एक क्षेत्रयुक्त स्थान कहा है इसलिये निर्वाण अभाव रूप नहीं हो सक्ती क्योंकि कहा है - जो क्षीणास्रव होजाते है वे सप्त पदार्थको प्राप्त करते है । यह सप्त पदार्थ निर्वाणरूप कोई वस्तु है जो शुद्धात्मा के सिवाय और कुछ नहीं होसक्ती । तथा ऐसेको सम्यग्ज्ञान से मुक्त कहा है । यह सम्यग्ज्ञान सच्चा ज्ञान है जो उस विज्ञान से भिन्न है जो रूपके द्वारा वेदना, सज्ञा, सस्कार से दा
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