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________________ जौन बैद्ध तत्वज्ञान | [ २१९ भावार्थ- वीतरागी साधु भीतर ऐसा कोई अपूर्व मानद पैदा होता है, जिसके सामने तीन का चिन्त ऐश्वर्य भी तृणके समान है । 630010 (२४) मज्झिमनिकाय चलगोपालक सूत्र | गौतम बुद्ध कहते हैं - निक्षुओ ! पूर्व में मगच निवासी ! एक मुर्ख गोपालकने वषा अतिम माह श दकार में गगानदी के इस पारको विना सोचे, उस पारको विद्या सोचे वे घाट ही विदे हकी ओर दुमरे तीरको गायें हाक दीं, वे गए गगानदीक स्रोतके भर में पड़ कर वही विनाशको प्राप्त हो गई । सो इमी लिये कि वह गोपालक मूर्ख था । इसी प्रकार जो कोई भ्रमण या ब्रह्मण इम लोक व परलोक से अनभिज्ञ हैं, मारके लक्ष्य अल्क्ष्यमे अनभिज्ञ है, मृत्युक्त लक्ष्य अलक्ष्यसे अनभिज्ञ हैं, उनके उपदेशों को जो सुनने योग्य, श्रद्धा कग्नेयोग्य समझेंगे उनके लिये यह चिरकाल कर महित कर दुखकर होगा । भिक्षुओ ! पूर्वक में एक मगधवासी बुद्धिमान वालेने वर्षा अतिम माह में शब्दकालमें गंगानदी के इस पार व उप पारको सोचकर घाटसे उत्तर तीरपर विदेहकी ओ गाए हाकीं । उसने जो वे गार्यो पितर, गायके नायक वृषम थे, उन्हें पहले हाका | वे airat arरको तिरछे काटकर स्वस्त्रिपूर्वक दूसरे पार चले गए। तब उसने दूसरी शिक्षित बलवान गार्योको हाका, फि' बछड़े और वछियों को हाका, फिर दुर्बक बछड़ोंको हाका, वे सब स्वस्ति पूर्वक दूसरे पार चले गए । उस समय तरुण कुछ ही दिनों का
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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