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________________ www. me दुसग भाग। (८) क्षुकीको नही जानना किंतु आर्य अष्टागिक आ ( २५ शेर, कसम घि) कोटी ठीक नहीं जानता। (९) निक्षु गोचर में कुशल नहीं होता भिक्षु चार स्मृति मानोंको ठाग 5 : { देखो अध्याय- ८ कामम्मति, रेदनास्कृति, विस्मति धर्मति) (१०) मिथिला छोड़े अशेषका दुहनेवाला होता हैशिक्षुओं को श्रद्ध छ ति निक्षाज, निवास, आसन, २०य औषघिकी सामग्रियोस अच्छी तरह सन्तुष्ट करते है, वहा भिक्षु मात्रासे ( मर्यादारूप ) ग्रहण करना नहीं जानता । (११) भिक्षु चिरकालसे प्रति संघके नायक जो स्थविर भिक्षु है उन्हे आतरिक्त पूमासे पूति नहीं करतानिक्षु स्थविरक्षुिओंवे. लिये गुप्त और प्रगट मंत्री युक्त कायिक कर्म, चिक कर्भ और मानस कर्म नहीं करता। ___ इस तरह इन ग्यारह धर्मोसे युक्त भिक्षु इस धर्म विनयमें वृद्धि विरूढिको प्राप्त करने में भयोग्य है। क्षुिओ, ऊपर लिखित ग्यारह बातोंसे विरोधरूप ग्यारह धर्मोसे युक्त गोपारक गोयूथकी रक्षा करने के योग्य होता है। इसी प्रकार उपर कथित ग्यारह धौसे विरुद्ध ग्यारह धर्मोस युक्त क्षुि वृद्धिविकदि, दिपुरता प्राप्त करनेके योग्य है । अर्थात् क्षुि-(१) रूपका यथार्थ जाननेवाला होता है, (२) बाल और पण्डितके कर्म लक्षणों को जानता है, (३) काम, व्यापाद, हिंसा, लोभ, दौमनस्म मादि अनुकल धर्मोका स्वागत नहीं करता है, (४) पाचों इन्द्रिय व
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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