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जैन बौद्ध तत्वज्ञान |
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उठे मनसे जानकर निपियारी नहीं होता वगग्यवान रहता है, (५) जाने हुए धर्म को दूमके
उपदेश है, (६) बहुत श्रुत विक्षुओं के पास समय समय के प्रश्न पूछता है, ७) नागतक बनाए धर्म और विनयके उपदेश दिये जाते समय अर्थ ज्ञानको पाता है, (८) अ - अष्टामिक मार्गको ठीक २ जानता है, (९) चारों स्मृति प्रस्थानोंको ठीक ठीक जानता है, (१०) भोजनादि ग्रहण करने में मात्र को जानता है, (११) स्थविर भिक्षुओंके किये गुप्त और पकट मैत्रीयुक्त कायिक, वाचिक, मानस कर्म करता है ।
नोट-इप सूत्रमें मूर्ख और चतुर अज्ञानी साधु और ज्ञानी साधुकी शक्तिम है । वास्तव में जो साधु इन ग्यारह खुममे युक्त होता है वही निर्वाणभोगकी तरफ बढ़ता हुआ उन्नति कर लत्ता है उसे (१) सर्व पौलिक रचनाका ज्ञाना होकर मोह त्यागना चाहिये । (२) पति के लक्षणों को जानकर स्त्रय पढिन रहना चाहिये । (३) क्रोष दि
बायका त्यागी होना चाहिये । (४ पाच इन्द्रिय व मनका सबमी होना चाहिये । ( ५ ) परोपकारादि धर्मका उपदेश होना चाहिये । (६) विनय सहिन बहुज्ञाता से शका निवारण करते रहना चाहिये । (७) धर्मों देश के सारको समझना चाहिये । (८) मोक्षमार्गका ज्ञाता होना चाहिये । (९) धर्मरक्षक भावनाओंको स्मरण करना चाहिये । (१०) सतोषपूर्वक भएपाहारी होना चाहिये । (११) बडोंकी सेवा मैत्रीयुक्त भावसे मन वचन कायसे करनी चाहिये । जैन सिद्धान्तानुसार भी ये सब गुण साधुमें होने चाहिये ।
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फलेका दृष्टान्त देकर उपयोगी वर्णन किया