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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान | [ १९५ (३) फिर वह भिक्षु उपेक्षा सहित स्मृतिमहित, सुखविहारी तृतीय ध्यानको प्राप्त हो विहरता है । इसने भी मारको अवा कर दिया। (४) फिर वह भिक्षु अदुख व मसुखरून, उपेक्षा व स्मृतिसे परिशुद्ध चतुर्थ ध्यानको प्राप्त हो विहरता है । इमने भी मारको ET कर दिया । (५) फिर वह भिक्षु रूप सज्ञाओंको, प्रतिधा ( प्रतिहिता ) सज्ञाओंको, नानापनकी संज्ञाओंको मनमें न करक 66 अनन्त आकाश है " इस आकाश आनन्त्य आयतनको प्राप्त हो विहरता है । इसने भी मारको अन्धा कर दिया । (६) फिर वह भिक्षु आकाश पतनको सर्वथा, अतिक्रमण कर "अनन्त विज्ञान है" इस विज्ञान आनन्त्य आयतनको प्राप्त हो विहरता है । इसने भी मारको अन्धा कर दिया । (७) फिर वह भिक्षु सर्वथा विज्ञान आयतनको अतिक्रमण कर " कुछ नहीं " इस आकिचन्यायतनको प्राप्त हो विहरता है । इसने भी मारको अन्धा कर दिया । (८) फिर वह भिक्षु सर्वथा आकिंचन्यायतनको अतिक्रमण कर नैव सज्ञान असज्ञा आयनतको प्राप्त हो विहरता है । इसने भी मारको अन्धा कर दिया । (९) फिर वह भिक्षु सर्वथा नैव सज्ञान असज्ञायतनको उल्लघन कर सज्ञावेदथित निरोधको प्राप्त हो विहरता है । प्रज्ञा से देखते हुए इसके आसव परिक्षीण होजाते है । इस भिक्षुने मरको अन्धा
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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