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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [१९१ अतुलसुखनिधान ज्ञान विज्ञानबीज विलयगतकलक शातविश्वप्रचारम् | गलितासकलशक विश्वरूप विशाल भज विगतविकार स्वात्मनात्मान्मेष ॥४३-१५॥ भावार्थ -हे आनन्द ! तु अपने ही आत्माके द्वारा भनत सुख समुद्र, केवल ज्ञानका बीज कलक रहित, सर्व सकल्पविकल्प रहित, सर्वशका रहित, ज्ञानापेक्षा सर्वव्यापी, महान, तथा निर्विकार मात्माको ही मज, उसीका ही ध्यान कर ।। ज्ञानभूषण भट्टारक तत्वज्ञानतरगिणीमें कहते हैसगत्यागो निर्जनस्थानक च तत्त्वज्ञान सर्वचिताविमुक्ति । निधित्व योगरोधो मुनीना मुक्तये ध्याने हेतवोऽमी निरुक्ता ॥८-१६॥ भावार्थ-परिग्रहका त्याग, निर्जनस्थान, तत्वज्ञान, सर्व चिताओंका निरोध, बाधार हितपना मन वचन काय योगोंकी गुप्ति, ये ही मोक्षके हेतु ध्यानके साधन कहे गए है। श्री देवसेनाचार्य तत्वसारमें कहते हैपरदव्य देहाई कुणइ ममत्ति च जाम तम्सुवरि । परसमयग्दो ताव बज्झदि कम्मे हि विविहेहि ॥ ३४ ॥ भावार्थ:-पर द्रव्य शरीरादि है। जब तक उनके ऊपर ममता करता है तबतक पर पदार्थमे रत है व तबतक नाना प्रकार कर्माको बाधता है।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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