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________________ १९१] दूसरा भाग। (२०) मज्झिमनिकाय-विवाय सूत्र। गौतमबुद्ध कहते हैं-नैवायिक (बड़ेलिया शिकारी) यह सोच कर निवाय (मृगोंके शिकार के लिये जगलमे बोए खेत) नहीं बोता कि इस मेरे बोए निवायको खाकर मृग दीर्घायु हो चिरकाल तक गुजारा करें । वह इसलिये बोता है कि मृग इस मेरे बोए निवायको मूर्छित हो भोजन करेंगे, मदको प्राप्त होंगे, प्रमादी होंगे, स्वेच्छाचारी होगे (और मै इनको पकड लूगा) । भिक्षुओ ! पहले मृगों (के दल) ने इस निवायको मूर्छित हो भोजन किया । प्रमादी हुए (पकडे गए) नैवायिकके चमत्कारसे मुक्त नहीं हुए। दूसरे मृगों (के दल) ने पहले मृगोकी दशाको विचार इस निवाय भोजनसे विरत हो भयभीत हो अरण्य स्थानोंमे विहार किया। ग्रीष्मके अतिम मासमे घास पानीके क्षय होनेसे उनका शरीर मत्यत दुर्बल होगया, बल वीर्य नष्ट हो गया तब नैवायिकके बोए निवायको खानेक लिये लौट, मूर्छित हो भोजन किया (पक्डे गए)। ___ तीसरे मृगों ( के दल ) ने दोनों मृगोंके दलोंकी दशाको देख यह सोचा कि 4 इम निवायको अमूर्छित हो भोजन करें । उन्होंने ममूर्छित हो भोजन किया। प्रमादी नहीं हुये। तब नैवायिकने उन मृगोंक गमन आगमनके मार्गको चारों तरफसे डडोंसे घेर दिया । ये भी पकड़ लिये गये । चौथे मृगों ( के दल) ने तीनों मृगोंकी दशाको विचार यह सोचा कि हम वहा आश्रय ले जहा नैवायिककी गति नहीं है, वहा
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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