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दूसरा भाग लिये ? नहीं। क्या पनिषद (मार्ग) ज्ञानदर्शन की विशुद्धि के लिये ? नहीं ' क्या ज्ञानदर्शनकी विशुद्धि के लिये ? नहीं । तब आप किस लिये भगवान्के पास ब्रह्मचर्यवास करते है ? उपादान रहित (परिग्रह रहित) परिनिर्वाणके लिये मै भगवान्के पास ब्रह्मचर्य वास करता है।
__सारिपुत्र कहते हैं तो क्या इन ऊपर लिखित पत्रोंसे अलग उवादान रहित परिनिर्वाण है ? नहीं। यदि इन धर्मो से अलग उपादान रहित निर्वाण का अधिकारी भी निर्वाणको प्राप्त होगा, तुम्हे एक उपमा देता । उपमासे भी कोई२ विज्ञ पुरुष कहे का अर्थ समझते हैं।
जैसे राजा प्रमेनजित कोसलको श्रावस्तीमें बसते हुए कोई अति आवश्यक काम साकेत (अयोध्या)में उत्पन्न होजावे। वहा जानेके लिये श्रावस्ती और साकेतके बीचमें सात स्थ विनीत (डाक) स्थापित करे। तब राजा प्रसेनजित श्रावस्तीसे निकलकर अत पुरके द्वारपर पहले रथ विनीत (स्थकी डाक) पर चढ़े, फिर दूसरेपर चढे पहलेको छोडदे, फिर तीसरेपर चढे दुसरेको छोडदे। इसतरह चलते चलते सातवें स्थ विनीतसे साकेतके अतपुरके द्वारपर पहुच जावे तब वहा मित्र व भमात्यादि राजासे पूछे-क्या आप इसी स्थविनीत द्वारा श्रावस्तीसे साकेत भाए हैं ? तब राजा यही उत्तर देगा मैंने बीच में सात रथ विनीत स्थापित किये थे । श्रावस्तीसे निकलकर चलते २ क्रमश एकको छोड़ दूसरेपर चढ़ इस सातवें स्थविनीतसे साकेतके अंत - पुरके द्वारपर पहुच गया है । इसी तरह श्रीलविशुद्धि तमीतक है