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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान। [१८५ वीर्यारम्भकी कथा कहनेवाला हो, स्वय शीकसम्पन्न (सदाचारी) हो, और शील सम्पदाकी क्या कहनेवाला हो, स्वयं समाधि सपन्न हो और समाधि सम्पदाकी कथा कहनेवाला हो स्वय प्रज्ञा सम्पन्न हो और प्रज्ञा सम्पदाकी कथा कइनेवाला हो, स्वय विभुक्ति सम्पन्न हो और विमुक्ति सपदा कथा कहनेवाला हो स्वय विमुक्ति ज्ञानदर्शन सम्पन्न ( मुक्तिके ज्ञानका साक्षात्कार जिसने कर लिया) हो और विमुक्ति ज्ञान दशन सम्पदाकी कथा कहता हो, जो सब्रह्मचारियों ( सह धर्मियों) के लिये भपवादक ( उपदेशक ), विज्ञापक, सदर्शक, समादयक, समुत्तेजक, सम्पहर्षक (उत्साह देनेवाला) हो । तब उन भिक्षुओंने कहा-कि जानि भूमिमें ऐसा पूर्ण मैत्रायणी पुत्र है तब पास बैठे हुए भिक्षु सारिपुत्रको ऐसा हुआ-- क्या कभी पूर्ण मैत्रायणी पुत्र के साथ समामम होगा ? जब गौतमबुद्ध राजग्रहीसे चलकर श्रावस्तीमें पहुचे तब पूर्ण मैत्रायणी पुत्र भी श्रावस्ती आए और परस्पर धार्मिक कथा हुई । जब पूर्ण मैत्रायणी पुत्र वहीं बचपनमें एक वृक्षके नीचे दिनमें विहार (ध्यान स्वाध्याय) के लिये बैठे थे तब मारि पुत्र भी उसी वनमें एक वृक्षके नीचे बैठे । मायकालको सारिपुत्र (प्रतिसल्लपन) (ध्यान)से उठ पूर्ण मैत्रायणी पुत्रके पास गए और प्रश्न किया । आप बुद्ध भगवान्के पास ब्रह्मचर्यवास किस लिये करते है ! क्या शील विशु. द्धिके लिये ? नहीं क्या चित्त विशुद्धिके लिये 2 नहीं ! क्या दृष्टि विशुद्धि ( सिद्धात ठीक करने ) के लिये 2 नहीं ! क्या सदेह दूर करनेके लिये ? नहीं ! क्या मार्ग अमार्गके ज्ञानके दर्शनकी विशुद्धिके
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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