SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुसरा भाग। वाम छद-भोगों पर (५१ १५ - द्वेषभन्द) "TE है इसलिये यह निरर्गल (लगा रूपी समारसे पुक्त) है! इमेक्षु अभिमान हूका अभिर ) नष्ट होता है। भविष्यमें न उत्पन्न इोनेल या होता है, इसलिए वह पन्त ध्वज (जिसकी रागादिको ध्वजा गिर गई है , पन्त भार ( जिमका भार गिर गया है ), विसंयुक्त ( गादिम विमुक्त ) ६.ग है । इसपना र मुक्त भिक्षुको इन्द्रादि देवता नहीं जान सक्त तक इस तथागत (भिक्षु ) का विज्ञान इसमें निश्चित है, क्योकि इस शरीरमें ही तथागत अनु अनुवेद्य ( अज्ञेय ) है। ___ भिक्षुओ ' कोई कोई श्रमण ब्राह्मण ऐसे ( ऊपर लिखित ) बादको माननेवाले ऐसा कहनेवाले मुझे असत्य, तुच्छ, मृषा, अभूत, झुठ लगाते है कि श्रमण गौतम वैनेयिक (नहींके बारको माननवाला) है । वह विद्यमान सत्व (जीव या आत्मा) के उच्छेदका उपदेश करता है । भिक्षुओ ! जो कि मै नहीं कहता। भिक्षुओ! पहले भी और अब भी मैं उपदेश करता हु, दुःखको और दुख निरोधको। यदि क्षुिओ । तथागतको दुसरे निन्दते उस्से तथागतको चोट, असतोष और चित्त विकार नहीं होता। यदि दुसरे तथागतका सरकार या पूजन करते हैं उससे तथागतको आनन्द सोमनस्क चित्तका प्रसन्नताऽतिरेक नहीं होता। जब दूसरे तथागतका सत्कार करते है तब तथागतको ऐसा होता है जो पहले ही त्याग दिया है। उसीके विषयमें इस प्रकार के कार्य किये जाते है । इसलिये भिक्षुओ ! यदि दुसरे तुम्हें भी निन्दं तो
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy