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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [१६७ उम्प लिय तुम्हें वित्त 47" ने दना चाहिये । यदि दूसरे तु' १ परे न १ लि. तु ३ मा एसा होना चाहिये। जा पहले त्यान दिया है उमा विषय प्रेस कार्य स्ये नाहे है। इसलिये भिक्षुओ ! जो तुम्हारा नहीं है, उसे छोडो, उमका छोड 1 चिरा त . तुरे हित सुखक लिये होगा। भिक्षुओ ! क्या तुम्ह। । नहीं है ? रूप तुम्हाला नहीं है इसे छोड़ो। इसी तरह वेदना, सज्ञा, संस्कार. विज्ञान तुम्हारा नहीं है इन्हें छोड़ो। जैसे इस जेतवनम जो तृण, काष्ट, शाखा, पत्र है उसे कोई अपहरण करे, जलाय या जो चाह मो करे, तो क्या तुम्हें ऐसा होना चाहिये । 'हमारी बाजको यह अपहरण कर रहा है ४ नहीं, सो किस हेतु !-यह हवाग आत्मा गा आत्मीय नहीं है। ऐसे ही भिक्षुओ। जो तुम्हारा नहीं है इस छोडो। रूप वेदना सज्ञा, मस्कार, विज्ञान तुम्हारा नहीं है दम छोड़ो। भिक्षुओ ! इसप्रकार मैन धर्मका उत्तान, वित्रत, प्रकाशिल, आवरण रहित करके अच्छी तरह व्याख्यान किया है ( बाख्यात है)। ऐम स्वाख्यान धर्ममे उन भिक्षुओके लिये कुछ उपदेश कर नेकी जरूरत नहीं है जो कि (१) अर्हत् क्षोणास्रव (गगादि मलसे रहित) होगए है, ब्रह्मचर्यवास पूरा कर चुके कृत करणीय, भार मुक्त, सच्चे अर्थको प्राप्त परिक्षीण भव सयोजन (जिनके भवसागरमें डालनेवाले बधन नष्ट होगए है) सम्याज्ञानियुक्त ( यथार्थ ज्ञानसे जिनकी मुक्ति होगई है ) है (२) ऐसे स्वाख्यात धर्ममे जिन भिक्षुओंके पाच (ऊपर कथित) अवरभागीय सयोजन नष्ट होगए है, वे
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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