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जैन बौद्ध तत्वज्ञान। [१४१ नोट-इस सूत्रमें रागद्वेष मोहके दूर करनेका विधान है। वास्तवमें निमित्तोंके आधीन भाव होते हैं, भावोंकी सम्हाल के लिये निमित्तोंको बचाना चाहिये । यहा पाच तरहसे निमित्तोंको टालनेका उपदेश दिया है । (१) जब बुरे निमित्त हों जिनसे रागद्वेष मोह होता है तब उनको छोडकर वैराग्यके निमित्त मिलावे जैसे स्त्री, नपुसक, बालक, शृगार, कुटुम्बादिका निमित्त छोडकर एकान्त सेवन, वन निवास, शास्त्रस्वाध्याय, साधुसगतिका निमित्त मिलावे तब वे बुरे भाव नाश होजावेंगे।
(२) बुरे निमित्तोंके छोडनेपर भी अच्छे निमित्त मिलाने पर भी यदि रागद्वेष मोह पैदा हों तो उनके फलको विचारे कि इनसे मेरेको यहा भी कष्ट होगा, भविष्य में भी कष्ट होगा, मैं निर्वाण मार्गसे दूर चला जाऊगा। ये भाव अशुद्ध है, त्यागने योग्य हैं। ऐसा बार बार विचारनेसे वे रागादि भाव दूर होजावेंगे।
(३) ऐसा करनेपर भी गा द्वेषादि भाव पैदा हो तो उनको स्मरण नहीं करना चाहिये। से ही चे मनमें आ मनको हटा लेना चाहिये । मनको तत्व विचारादिमें कगा देना चाहिये।
(४) ऐसा करनेपर भी यदि रागद्वेष, मोह पैदा हो तो उनके सस्कारके कारणोंको विचार करे। इसतरह धीरे२ वे रागादि दुर होजायेंगे।
(५) ऐसा होते हुए भी यदि रागादि भाव पैदा हों तो बला स्कार चित्तको हटाकर तत्वविचारमें लगानेका अभ्यास करना चाहिये। पुन पुन. उत्तम मावीक संस्कार से बुरे भावकि संस्कार मिट जाते है।