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मापने पढाकर वकील बना लिया है, और अब दोनों माई वकालत करते है । आपने अपनी माताजीकी आज्ञानुसार करीब १५, १६ हजारकी लागतसे एक सुदर और विशाल मकान भी रहने के लिये बना लिया है। रोहतक निवासी ला० अनूसिहजीकी सुपुत्रीके साथ श्री० शान्तिप्रसादजीका भी विवाह होगया है। अब श्रीमतीजीकी आज्ञानुमार उनके दोनों पुत्र तथा उनकी स्त्रिय कार्य संचालन करती हुई मापसमें बडे प्रेमसे रहती है। श्री० महावीरप्रसादजीके मात्र तोन कन्यायें है जिनमें बडी कन्या (राजदुलारीदेवी) आठवी कक्षा उत्तीर्ण करनेके अतिरिक्त इस वर्ष पञ्जाबकी हिदीरत्न परीक्षा में भी उत्तीर्णता प्राप्त कर चुकी है। छोटी कन्या पाचवीं कक्षा पढ़ रही है, तीसरी अभी छोटी है।
श्रीमतीजीकी एक विश्वा ननद श्रीमती दिलभरीदेवी ( पति देवकी बहिन ) है, जो कि मापके पास ही रहती है । श्रीमतीजी १०-१२ वर्षसे चातुर्मापके दिनों में एकवार ही भोजन करती है किन्तु पिछले डेढ सालसे तो हमेशा ही एक दफा भोजन करती हैं, इसके अतिरिक्त बेला, तेला आदि पकारके व्रत उपवास समय२ पर करती रहती हैं। आपका हरसमय धर्मध्यानमें चित्त रहता है। जैनबदी मूलबद्रीको छोड़कर भाग्ने अपनी ननद के साथ समस्त जैन तीर्थो की यात्रा कीहुई है। श्री सम्मेदशिखरजीकी यात्रा तो आपने दोवार की है। गतवर्ष आपकी आज्ञानुसार ही आपके पुत्र बा० महावीरप्रसादजीने श्री० ब्र० सीतलप्रसादजीका हिसारमें चातुर्मास करवाया था, जिससे सभी भाइयों को बड़ा धर्मलामा हुमा ।