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आपके दोनों पुत्रोंकी रक्षा व शिक्षाका समुचित प्रबन्ध होता रहा । किंतु सन् १९९८ में ला० सरदार सिंहजीका भी स्वर्गवास होगया ।
अपने बाबा सरदार सिंहजी की मृत्युके समय श्री० महावीरप्रसादजीने एफ० ए० पास कर लिया था और साथ ही ला० सम्मनलालजी जैन पट्टीदार हासी ( जो उस समय ग्वालियर स्टेट के नहरक महकमा में मजिस्ट्रेट थे ) निवासी की सुपुत्री के साथ विवाह भी होगया था। श्री० शातिप्रसादजी उस समय चौथी कक्षा में पढ़ते थे । अपने बाबाजीकी मृत्यु होनानेपर श्री० महावीरप्रसादजी उस समय अधीर और हताश न हुये, किन्तु उन्होंने अपनी पूज्य माताजी ( श्रीमतो ज्वालादेवाजी ) की आज्ञानुसार अपने श्वसुर ला० सम्मत लालजीकी सम्मति व सहायतामे अपनी शिक्षा वृद्धिका क्रम अगाडी चालू रखने का ही निश्चय किया, जिसके फलस्वरूप वे लाहौर में ट्यूशन लेकर कालेज में पढने लगे । इस प्रकार पढते हुये उन्होंने अपने पुरुषार्थ वलसे चार वर्षमे वकालतका इम्तिहान पास कर लिया और सन् १९२२ में वे वकील होकर हिसार आगये ।
हिसार में वकालत करते हुये आपने असाधारण उन्नति की, और कुछ ही दिनोंमें आप हिमारमें अच्छे वकीलोंमें गिने जाने लगे । आप बड़े धर्मप्रेमी और पुरुषार्थी मनुष्य हैं। मातृ भक्ति आपमें कूट कूटकर भरी हुई है। आप सर्वदा अपनी माताकी आज्ञानुसार काम करते है | अधिक से अधिक हानि होनेपर भी माताजीकी आज्ञा का उल्लघन नहीं करते है । आप अपने छोटे भाई श्री० शान्तिप्रसादजी के ऊपर पुत्र के समान स्नेहदृष्टि रखते हैं । उनको भी