________________
जमघौद्ध तत्त्वज्ञान । [१०१ ध्यानको प्राप्त हो विहरता है । तब भिक्षु सुख और दुखका त्यागी होता है, उपेक्षा व स्फूर्तिसे शुद्ध होता है। उस समय वह न अपनेको न दुसरेको न दोनोंको पीडित करता है, उस समय वेदनाको वेदता है। यह है मव्याबाध वेदना आस्वाद ।
(७) क्या है वेदनाका दुष्परिणाम-वेदना अनित्य, दुख और विकार स्वभाववाली है।
(८) क्या है वेदनाका निस्सरण-वेदनाओंसे रागका हटाना, गगका परित्याग, इसतरह जो कोई वेदनाओंका आस्वाद नहीं करता है, उनके आदिनव व निस्सरणको यथार्थ जानता है, वह स्वयं वेदनाओंको त्यागेंगे व दुसरेको भी वैसा उपदेश करेंगे यह सभव है।
नोट-इस वैराग्य पूर्ण सूत्रमें कामभोग, रूप तथा वेदनाओंमे वैराग्य बताया है तथा यह दिखलाया है कि जिस भिक्षुको इन तीनोंका गग नहीं है वही निर्वाणको अनुभव कर सकता है। बहुत उच्च विचार है।
(९) काम विचार-काम भोगोंके आस्वादका तो सर्वको पता है इसलिये उनका वर्णन करनेकी जरूरत न समझकर काम भोगोंकी तृष्णासे व इन्द्रियोंकी इच्छासे प्रेरित होकर मानव क्या क्या खटपट करते है व किस तरह निराश होते है व तृष्णाको बढ़ाते है या हिंसा, चोरी आदि पाप करते हैं, राज्यदड भोगते है, फिर दु खसे मरते हैं, नर्कादि दुर्गतिमें जाते हैं, यह बात साफ साफ बताई है। जिमका भाव यही है कि प्राणी असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प, सेवा इन छ माजीविकाका उद्यम करता है, वहा उसके तृष्णा अधिक