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दूसरा भाषा होती है कि इच्छित धन मिले। यदि सतोषपूर्वक करे तो सताप कम हो। असतोषपूर्वक करनेसे बहुत परिश्रम करता है। यदि सफल नहीं होता है तो महान शोक करता है। यदि सफल होगया, इच्छिन धन प्राप्त कर लिया तो उस धनकी रक्षाकी चिन्ता करके दुखित होता है । यदि कदाचित् किसी तरह जीवित रहते नाश होगया तो महान दुख भोगता है या आप शीघ्र मर गया तो मैं धनको भोग न सका ऐसा मानकर दुख करता है । मोग सामग्रीके लामके हेतु कुटुम्बी जीव परस्पर लड़ते है, राजालोग लड़ते है, युद्ध होजाने है, भनेक मरते हैं, महान् कष्ट उठाते है। उन्हीं भोगोंकी लालसासे धन एकत्र करनेके हेतु लोग झूठ बोलते, चोरी करते, डाका डालत परस्त्री हरण करते है । जब वे पकड़े जाते है, राजाओं द्वारा भारी दंड पाते हैं, सिर तक छेदा जाता है, दु स्वसे मरते हैं। इन्हीं काम भोगकी तृष्णावश मन वचन कायके सर्व ही अशुभ योग कहाते है जिनसे पापकर्मका वध होता है और जीव दुर्गतिमें जाकर दुख भोगते हैं । जो कोई काम भोगकी तृष्णाको त्याग देता है वह इन सब इस लोक सम्बन्धी तथा परलोक सम्बन्धी दुस्खोंसे छुट जाता है। वह यदि गृहस्थ हो तो सतोषसे मावश्यक्तानुसार कमाता है, कम खर्च करता है, न्यायसे व्यवहार करता है। यदि धन नष्ट होजाता है तो शोक महीं करता है। न तो वह राज्यदंड भोगता है न मरकर दुर्गतिमें जाता है। क्योंकि वह भोगोंकी तृष्णासे ग्रसित नहीं है। न्यायवान धर्मात्मा है। हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील व मुर्छासे रहित है। साधु तो पूर्ण विरक्त होते हैं। वे पाचों इन्द्रियोंकी इच्छाओंसे बिलकुल विरक्त होते हैं । निर्वा