________________
जैन बौद्ध तत्वज्ञान। [९१ सर्वद्वन्द्वविनिमुक्त स्थानमात्मस्वभावजम् | प्राप्त परमनिर्वाण येनासौ सुगत स्मृत ॥ ४१ ॥
भावार्थ-जिसने कर्मोंमें महान योद्ध' स्वरूप रागद्वेषादिको जीत लिया है व जो जन्म मरणके चक्रमे छूट गया है वह जिन कहलाता है। जिसने केवलज्ञान रूपी बोधसे तीन लोकको जान लिया व जो अनन्त ज्ञानसे पूर्ण है उस बुद्धको में नमन करता हू। जिसने सर्व उपाधियोंसे रहित आत्मीक स्वभावसे उत्पन्न परम निर्वाणको प्राप्त कर लिया है वही सुगत कहा गया है ।
धर्मध्यानका स्वरूप तत्वानुशासनमे कहा हैसदृष्टिज्ञान्वृत्तानि धर्म धर्मेश्व विदु । तस्माधटनपेत हि धर्थं तद्धयानमभ्यधु ॥५१॥ मात्मन परिणामो यो मोइक्षोभविवर्जित । स च धर्मोपेत यत्तस्मात्तद्धर्म्यमित्यपि ॥ १२ ॥
भावार्थ-सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रको धर्मके ईश्वरोंने धर्म कहा है। ऐसे धर्मका जो ध्यान है सो धर्मध्यान है । निश्चयसे मोह व क्षोभ ( रागद्वेष ) रहित जो आत्माका परिणाम है वही धर्म है, ऐसे धर्मसहित ध्यानको धर्मध्यान कहते है। ___ आत्मा निर्वाण स्वरूप है, मोह रागद्वेष रहित है ऐसा भद्धान सम्यग्दर्शन है व ऐसा ज्ञान सम्यग्ज्ञान है व ऐसा ही ध्यान सम्यक्चारित्र है। तीनोंका एकीकरण आत्माका वीतरागभाव आत्मतल्लीन रूप ही धर्म है। पुरुषार्थसिद्धयुपायमें कहा है
बद्धोधमेन नित्यं लब्ध्वा समय च बोधिळामस्य । पदमवकम्ब्य मुनीना कर्तव्य सपदि परिपूर्णम् ॥ २१ ॥