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________________ जैन बोद तत्वज्ञान। सुख या दुखके अनुभवका विचार नहीं है, उस समय भदुख मसुख भावका अनुभव करना चाहिये जैसे हम पत्र लिख रहे हैं, मकान साफ कर रहे है, पढ़ा रहे है। जैन शास्त्रमे कर्मफल चेतना और कर्म चेतना बताई है। कर्मफल चेतनामें मैं सुखी या मैं दुखी ऐसा भाव होता है। कर्म चेतनामें केवल राग व द्वेषपूर्वक काम करनेका भाव होता है, उस समय दु ख या सुखका भाव नहीं है । इसीको यहा पाली सूत्रमे अदु ख असुखका अनुभव कहा है, ऐसा समझमें माता है । ज्ञानी जीव इन्द्रियजनित सुखको हेय मर्थात् त्यागने योग्य जानता है, मात्मसुखको ही सच्चा सुख जानता है । वह सुख तथा दुखको भोगते हुए पुण्य कर्म व पाप-कर्मका फल समझकर न तो उन्मत्त होता है और न क्लेशभाव युक्त होता है। जैन सिद्धातमें विपाकविचय धर्मध्यान बताया है कि मुख व दुखको अनुभव करते हुए आन ही कर्मों का विपाक है ऐसा समझना चाहिये। श्री तत्वार्थसारमे कहा हैद्रव्यादिपत्यय कर्म फलानुभवन प्रति । भवति प्रणिधान यद्विपाकविचयस्तु स ॥ ४२-७ ॥ भावार्थ-द्रव्य, क्षेत्र, काल मादिक निमित्तसे जो कर्म अपना फल देता है उस समय उसे अपने ही पूर्व किये हुए कर्मका फल अनुभव करना विपाक विचय धर्मध्यान है। इष्टोपदेशमें कहा हैवासनामात्रमेवैतत्सुख दुःख च देहिना। तथा युद्वेजयत्येते भोगा रोगा इवापदि ॥ ६॥
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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