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कथा-साहित्य
पर सीताका हरण हो जाता है। लकामे सीताको अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं। हनूमान-द्वारा सीताका समाचार पाकर रामचन्द्र सुप्रीवकी सहायतासे रावणपर आक्रमण करते है और लकाका विजयकर सीताको ले आते हैं । अयोध्या में आनेपर सीतापर दोषारोपण किया जाता है, फलतः राम सीताको घरसे निर्वासित कर देते है। वजजधके यहाँ सीता लवण और अंकुशको जन्म देती है ; इन दोनोका रामसे युद्ध होता है । परिचय हो जानेपर सीवाकी अग्नि-परीक्षा ली जाती है। सतीके दिव्य तेजसे अग्नि जल बन जाती है और वह ससारकी स्वार्थपरता देखकर विरक हो जैनटीक्षा ले लेती है और तपस्या कर स्वर्ग पाती है।
इस कथा कथोपकथन प्रभावशाली वन पड़े है । लेखकने चरित्रचित्रणमें भी अपूर्व सफलता प्रास की है। सवाद कथाकी गतिको कितना प्रवाहमय बनाते है यह निम्न उद्धरणसे स्पष्ट है। नारद मनही मन बडबडाते हुए कहते है-"हु! यह दुर्दशा यह अत्याचार ! नारदसे ऐसा व्यवहार ! ठीक है। व्याधियोंको देख लूगा । सीता! सीता! तुझे धन यौवनका गर्व है, उस गर्वके कारण तूने नारदका अपमान किया है। अच्छा है ! नारद अपमानका बदला लेना जानता है। नारद थोडे ही दिनों में तुझे इसका फल चखायेगा ओर ऐसा फल चखायेगा कि जिससे कारण तू जन्मभरतक हृदय-वेदनासे जलती रहेगी।" इस प्रकार इस कहानीमे कथातत्वोका यथेष्ट समावेश किया गया है।
इस रचनामें उत्सुकता गुण पर्याप्त मात्रामें विद्यमान है। लेखक वर्माजीने पौराणिक आख्यानमे भी कल्पनाका यथेष्ट सम्मिश्रण किया है। सुरसुन्दरी
र सुरसुन्दरी एक राजाकी कन्या है और अमरकुमार एक
" सेटका पुत्र । दोनो एक साथ अव्ययन करते हैं, दोनोंमें परस्पर आकर्षण ,उत्पन्न होता है और वे दानो प्रेमपाशमें बंध जाते है । एक दिन कुमारी अपने पल्लेमे सात कौड़ियाँ बाँधकर ले जाती है
१. प्रकाशक-आत्मानन्द जैन ट्रैक्ट सोसाइटी, अंबाला शहर ।
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