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हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन और अमरकुमार खोलकर मिठाई मॅगाकर बॉट देता है। राजकुमारी कुमारके इस कृत्यसे क्रोधित होती है और कहती है कि सात कोडीमें राज्य प्राप्त किया जा सकता है।
दोनोका विवाह हो जाता है। अमरकुमार व्यापार करने जाता है, साथमे सुरसुन्दरी भी । सिंहल द्वीपके वनमें जहाज रोककर दोनों गये। सुन्दरी अमरके घुटनोपर सिर रखकर सो गयी । अमरको सुन्दरीके पूर्वक कटुवचन और अपना अपमान याद आया ; अतः वह उसके सिरके नीचे पत्थर लगाकर वहीं सोता छोड़ चल दिया।
जब सुन्दरीकी निद्रा भग हुई तो उसने अपने अचलम सात कौड़ियाँ बषी पायीं; साथ ही एक पत्र, जिसमे लिखा था कि सात कौड़ियोसे राज्य लेकर रानी बनो। सुन्दरीका क्षोभ जाता रहा और क्षत्रियत्व जाग्रत हो गया । उसकी आत्मा बोल उठी-"छि सुरसुन्दरी, नारी होकर तेरे यह भाव ! पुरुपका धर्म कठोरता है, नारीका धर्म कमनीयता और कोमलता । पुरुषका कार्य निर्दयता है तो स्त्रीका कार्य धर्म-दया" । इसके पश्चात् वह निश्चय करती है कि मैं क्षत्रिय सन्तान हूँ, इस प्रतारणाका बदला अवश्य लेंगी।
रात्रिके समय उस पहाड़की गुफासे कठोर ध्वनि करता हुआ एक राक्षस निकला । सुन्दरीके दिव्य तेजसे भयभीत हो वह उसे पुत्रीवत् मानने लगा। कुछ समय उपरान्त वहाँ एक सेठ आता है और वह उसे ले जाता है। उसकी दृष्टिमे पाप समा जाता है, जिससे वह उसे एक वेश्याके हाथ बेच देता है, सुन्दरी किसी प्रकार वहाँसे छुटकारा पाकर समुद्रकी उत्ताल तरगोंमे पहुँचती है और फिर सेठके नाविकों द्वारा त्राण पाती है । वहाँ भी उसी विपत्तिको ग्राम होती है, किन्तु एक दासी-द्वारा रक्षण पा अपना छुटकारा खोजती है। इसी बीच मुनिराजका दर्शन कर अपने पतिसे मिलनेका समय पूछती है । सुन्दरीको अनेक दुराचारियोंके फन्देमें. फॅसना पडा, अनेकोने उसके धीलको लूटनेकी कोशिश की, पर वह अपने