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हिन्दी - जैन- साहित्य - परिशीलन
उन्हे अपने वश कर लिया । रामके इस कार्य से जनक बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें सीता के योग्य वर समझ उन्हीं के साथ सीताका विवाह करनेका निश्चय कर लिया ।
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जब नारदने सीताके रूपकी प्रशंसा सुनी तो वह उसको देखने के लिए मिथिला आये । नारद उस समय इतने आतुर थे कि राजाके पास न जाकर सीधे अन्तःपुरमें सीताके पास चले गये । सीता अपने कमरे में अकेली ही थी, अतः वह उनके अद्भुत रूपको देखकर डर गयी तथा चिल्लाने लगी । अन्तःपुरके नौकरोने नारदकी दुर्दशा की, जिससे अपमानित नारदने सीता से प्रतिशोध लेनेकी भावनासे उसका एक सुन्दर चित्र खींचा और उसे चन्द्रगति विद्याधरके ash भामण्डलको भेट किया । भामण्डल उस चित्रको देखते ही मुग्ध हो गया । मदनज्वरके कारण वह खाना-पीना भी भूल गया । पुत्रकी इस दशाको देखकर विद्याधरने नारदको अपने पास बुलाया और चित्राकित कन्याका पता पूछा । नारदकै कथनानुसार उस विद्याधरने विद्याके प्रभावसे महाराज जनकको रात सोते हुए अपने यहाँ बुला लिया । जब जनक जागे तो अपनेको एक अपरिचित स्थानमे पाकर पूछने लगे कि मै कहाँ आ गया हॅू ? चन्द्रपति विद्याधरने उससे सीताका विवाह भामण्डल के साथ कर देने को कहा । महाराज जनकने बड़ी दृढ़तासे विद्याधरको उत्तर दिया । अन्तर्मे विद्याधरने 'वज्रावर्त' और 'अर्णवावर्त' नामक दो धनुष जनकको दिये और कहा कि सीता का स्वयबर करो, जो स्वयंवरमे इन दोनों धनुषमेसे एक धनुषको तोड़ देगा ; उसीके साथ सीताका विवाह होगा । जनक किसी प्रकार विद्याधरकी शर्त मंजूर कर मिथिला आ गये और सीताका स्वयंवर रचा। रामने स्वयंवरमे धनुष तोड़ा और उन्ही के साथ सीताका विवाह हो गया ।
विवाहके उपरान्त कुछ ही दिनोंके बाद कैकेयीका वरदान माँगना और राजाका वनप्रयाण आता है । वनमें अनेक कारण-कलापोंके मिलने